पृष्ठ:योग प्रदीप.djvu/१५

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योगप्रदीप
 

को प्रकट करना और जड पार्थिव प्रकृतिमें दिव्य जीवन निर्माण करना इसका लक्ष्य है। यह बड़ा ही दुर्गम लक्ष्य और कठिन योगसाधन है; बहुतेरोंको, या प्रायशः सभी लोगोंको यह असम्भव ही प्रतीत होगा। सामान्य, अनभिज्ञ जगञ्चेतनाम अज्ञानकी जो शक्तियाँ जमकर डटी हुई हैं वे इसके विरुद्ध है, इसका होना ही नहीं मानतीं और इसके होनमें बाधा ही डालनेका यत्न करती हैं और साधक स्वयं भी देखेगा कि उसके अपने मन, प्राण और शरीर इसकी प्राप्तिमे कितनी जबर्दस्त रुकावटें डालते हैं। यदि तुम इस लक्ष्यको सर्वात्मना स्वीकार कर सको, इसके लिये सब कठिनाइयोंका सामना करनेके लिये तैयार हो, पीछ जो कुछ हुआ उसे और उसके बन्धनोंको पीछे छोड़ दो और इस भगवद्भावकी संभावनाके लिये सब कुछ छोड़ देनेके लिये, तथा आगे फिर जो कुछ हो उसके लिये, तैयार हो जाओ, तो ही तुम यह आशा कर सकते हो कि इस योगसाधनाके पीछे जो महत्सत्य छिपा हुआ है उसे स्वानु- भवसे ढूँँढकर प्राप्त कर सकोगे।

इस योगकी साधनाका कोई बँधा हुआ मानसिक अभ्यासक्रम या ध्यानका कोई निश्चित प्रकार अथवा कोई मन्त्र या तन्त्र नहीं है। यह साधना साधकके हृदयकी अभीप्सासे आरम्भ होती है। साधक आरम्भमें अपने

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