पृष्ठ:योग प्रदीप.djvu/८१

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योगप्रदीप
 

सम्बन्ध है वही सिद्धिका मुख्य साधन है। पहला उद्घाटन हृच्चक्रमें एकाग्र ध्यान करनेसे होता है अर्थात् भगवान्से यह प्रार्थना करनेसे होता है कि तुम हमारे अन्दर प्रकट हो और हृच्चक्रके द्वारा समस्त प्रकृतिको उबार लो और ले चलो। अभीप्सा, प्रार्थना, भक्ति, प्रेम, समर्पण ये साधनाके इस अंशके मुख्य आधार हैं, इनके साथ अवश्य ही उन सब चीजोंका त्याग भी है जो हमारी अभीप्साके मार्गमें बाधक हैं। दूसरा उद्घाटन मस्तकमें (बादको मस्तकके ऊपर) ध्यान करनेसे और भागवत शान्ति, शक्ति, ज्योति, ज्ञान, आनन्द हमारे अन्दर अवतरित हों―पहले शान्ति अवतरित हो अथवा शान्ति और शक्ति दोनों एक साथ अवतरित हों- ऐसी भावना और प्रार्थना तथा दृढ़ इच्छा करनेसे होता है। कुछ साधक पहले ज्योति पाते हैं या पहले आनन्द पाते हैं अथवा पहले ज्ञानका ही अकस्मात् प्रपात होने लगता है। कुछ साधकोंका प्रथम उद्घाटन ऐसा होता है कि उनके सामने या उनके ऊपर अनन्त शान्ति, शक्ति, ज्योति या आनन्द छा जाता है और पीछे वे इनकी ओर आरोहण करते हैं या ये चीजें ही उनकी निम्न प्रकृतिमें उतरने लगती हैं। फिर ऐसे भी साधक हैं जिनमें पहले मस्तकमें, तब वहाँसे हृदयप्रदेशतक, तब नाभिस्थान और फिर नीचे और समस्त शरीरमें अवतरण होता है; या शान्ति

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