ड़ियाँ खाने लगे। भूख लगी हुई थी। ये चीजें बहुत प्रिय लगीं। कहा-"सूरदास ने तो यह बात मुझसे नहीं कही।"
जगधर--"वह कभी न कहेगा। कोई गला भी काट ले, तो सिकायत न करेगा।"
प्रभु सेवक-"तब तो वास्तव में कोई महापुरुष है। कुछ पता न चला, किसने झोपड़े में आग लगाई थी?”
जगधर--"सब मालूम हो गया हजूर, पर क्या किया जाय। कितना कहा गया कि उस पर थाने में रपट कर दे, मुदा कहता है, कौन किसी को फँसाये। जो कुछ भाग में लिखा था, वह हुआ। हजूर, सारी करतूत इसी भैरो ताड़ीवाले की है।"
प्रभु सेवकः—“कैसे मालूम हुआ? किसी ने उसे आग लगाते देखा?"
जगधर-"हजूर, वह खुद मुझसे कह रहा था। रुपयों की थैली लाकर दिखाई। इससे बढ़कर और क्या सबूत होगा?”
प्रभु सेवक-"भैरो के मुँह पर कहोगे?"
जगधर-"नहीं सरकार, खून हो जायगा।"
सहसा भैरो सिर पर ताड़ी का घड़ा रखे आता हुआ दिखाई दिया। जगधर ने तुरंत खोंचा उठाया, बिना पैसे लिये कदम बढ़ाता हुआ दूसरी तरफ चल दिया। भैरो ने समीप आकर सलाम किया। प्रभु सेवक ने आँखें दिखाकर पूछा-"तू ही भैरो ताड़ीवाला है न?”
भैरो--(काँपते हुए) "हाँ हजूर, मेरा ही नाम भैरो है।"
प्रभु सेवक-"तू यहाँ लोगों के घरों में आग लगाता फिरता है?"
भैरो-"हजूर, जवानी की कसम खाता हूँ, किसी ने हजूर से झूठ कह दिया है।"
प्रभु सेवक-"तू कल मेरे गोदाम पर फौजदारी करने में शरीक था?"
भैरो-"हजूर का तावेदार हूँ, आपसे फौजदारी करूँगा! मुंसीजी से पूछिए, झूठ कहता हूँ या सच। सरकार, न जाने क्यों मारा मोहल्ला मुझसे दुसमनी करता है। आने घर में एक रोटी खाता हूँ, वह भी लोगों से नहीं देखा जाता। यह जो अंधा है, हुजूर, एक ही बदमास है। दूसरों की बहू बेटियों पर बुरी निगाह रखता है। माँग-माँगकर रुपये जोड़ लिये हैं, लेन-देन करता है। सारा मोहल्ला उसके कहने में है। उसी के चेले बजरंगी ने फौजदारी की है। मालमस्त है, गाय-भैसे हैं, पानी मिला-मिलाकर दूध बेचता है। उसके सिवा किसका गुरदा है कि हजूर से फौजदारी करे।"
प्रभु सेवक-"अच्छा! इस अंधे के पास रुपये भी हैं।"
भैरो-'हजूर, बिना रुपये के इतनी गरमी और कैसे होगी। जब पेट भरता है, तभी तो बहू-बेटियों पर निगाह डालने की सूझती है।"
प्रभु सेवक-"बेकार क्या बकता है, अंधा आदमी क्या बुरी निगाह डालेगा। मैंने सुोत हना है, व वहुत सीधा-सादा आदमी है।"