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रंगभूमि

भैरो-“तुमसे बड़ा पानी मैं हूँ कि सबको नसा खिलाकर अपना पेट पालता हूँ। सच पूछो, तो इससे बुरा कोई काम नहीं। आठों पहर नसेबाजों का साथ, उन्हीं की बातें सुनना, उन्हीं के बीच में रहना। यह भी कोई जिंदगी है!"

दयागिरि-"क्यों बजरंगी, साधू-संत तो सबसे बड़े पापी होंगे कि वे कुछ नहीं करते?"

बजरंगी-"नहीं बाबा, भगवान् के भजन से बढ़कर और कौन उद्यम होगा? राम-नाम की खेती सब कामों से बढ़कर है।"

नायकराम-"तो यहाँ अकेले बजरंगी पुन्यात्मा हैं, और सब-के-सब पापी हैं?"

बजरंगी-सच पूछो, तो सबसे बड़ा पापी मैं हूँ कि गउओं का पेट काटकर, उनके बछड़ों को भूखों मारकर, अपना पेट पालता हूँ।”

सूरदास-"भाई, खेती सबसे उत्तम है, बान उससे मद्धिम है; बस, इतना ही फरक है। बान को पाप क्यों कहते हो, और क्यों पापी बनते हो? हाँ, सेवा निरधिन है, और चाहो, तो उसे पाप कहो। अब तक तो तुम्हारे ऊपर भगवान् की दया है, अपना-अपना काम करते हो, मगर ऐसे बुरे दिन आ रहे हैं, जब तुम्हें सेवा और टहल करके पेट पालना पड़ेगा, जब तुम अपने नौकर नहीं, पराये के नौकर हो जाओगे, जब तुममें नीति-धरम का निसान भी न रहेगा।"

सूरदास ने ये बातें बड़े गंभीर भाव से कहीं, जैसे कोई ऋषि भविष्यवाणी कर रहा हो। सब लोग सन्नाटे में आ गये। ठाकुरदीन ने चिंतित होकर पूछा-"क्यों सूरे, कोई बिपत आनेवाली है क्या? मुझे तो तुम्हारी बातें सुनकर डर लग रहा है। कोई नई मुसीबत तो नहीं आ रही है?"

सूरदास-"हाँ, लच्छन तो दिखाई देते हैं, चमड़े के गोदाम बाला साहब यहाँ एक तमा का कारखाना खोलने जा रहा है। मेरो जमीन माँग रहा है। कारखाने का खुलना ही हमारे ऊपर बिपत का आना है।"

ठाकुरदीन-"तो जब यह जानते ही हो, तो क्यों अपनी जमीन देते हो?"

सूरदास-"मेरे देने पर थोड़े ही है भाई, मैं दूँ, तो भी जमीन निकल जायगी, न दूँ, तो भी निकल जायगी। रुपयेवाले सब कुछ कर सकते हैं।"

बजरंगी-"साहब रुपयेवाले होंगे, अपने घर के होंगे। हमारी जमोन क्या खाकर ले लेंगे? माथे गिर जायँगे, माथे! ठट्ठा नहीं है।"

अभी ये ही बातें हो रही थीं कि सैयद ताहिरअली आकर खड़े हो गये, और नायकराम से बोले-“पण्डाजी, मुझे आपसे कुछ कहना है, जरा इधर चले आइए।"

बजरंगी—“उसी जमीन के बारे में कुछ बातचीत करनी है न? वह जमीन न बिकेगी।"

ताहिर—"मैं तुमसे थोड़े ही पूछता हूँ। तुम उस जमीन के मालिक-मुख्तार नहीं हो।"