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रंगभूमि


सोफी को ज्ञात हो गया कि मेरी धमकी सर्वथा निष्फल नहीं हुई। विवशता का शब्द जबान पर, खेद का भाव मन में आया, और अनुमति की पहली मंजिल पूरी हुई। उसे यह भी ज्ञात हुआ कि इस समय मेरे हाव-भाव का इतना असर नहीं हो सकता, जितना बल-पूर्ण आग्रह का। सिद्धांतवादी मनुष्य हाव-भाव का प्रतिकार करने के लिए अपना दिल मजबूत कर सकता है, वह अपने अंतःकरण के सामने अपनी दुर्बलता स्त्री-कार नहीं कर सकता, लेकिन दुराग्रह के मुकाबले में वह निष्क्रिय हो जाता है। तब उसकी एक नहीं चलती। सोफी ने कटाक्ष करते हुए कहा-"अगर तुम्हारा जातीय कर्तव्य तुम्हे प्यारा है, तो मुझे भी आत्मसम्मान प्यारा है। स्वदेश की अभी तक किसी ने व्याख्या नहीं की; पर नारियों की मान-रक्षा उसका प्रधान अंग है और होनी चाहिए, इससे तुम इनकार नहीं कर सकते।”

यह कहकर वह स्वामिनी-भाव से मेज के पास गई और एक डाकेट का पत्र निकाला, जिस पर एजेंट आज्ञा-पत्र लिखा करता था।

क्लार्क-"क्या करती हो सोफी? खुदा के लिए जिद मत करो।"

सोफी-"जेल के दारोगा के नाम हुक्म लिखूँगी।"

यह कहकर वह टाइपराइटर पर बैठ गई।

क्लार्क-"यह अनर्थ न करो सोफी, गजब हो जायगा।"

सोफी-"में गजब से क्या, प्रलय से भी नहीं डरती।"

सोफी ने एक-एक शब्द का उच्चारण करते हुए आज्ञा-पत्र टाइप किया। उसने एक जगह जान-बूझकर एक अनुपयुक्त शब्द टाइप कर दिया, जिसे एक सरकारी पत्र में न आना चाहिए था। क्लार्क ने टोका-"यह शब्द मत रखो।"

सोफी-"क्यों, धन्यवाद न दूँ?"

क्लार्क-"आज्ञा-पत्र में धन्यवाद का क्या जिक्र? कोई निजी थोड़े ही है।"

सोफी-"हाँ, ठीक है, यह शब्द निकाले देती हूँ। नीचे क्या लिखूँ?"

क्लार्क-"नीचे कुछ लिखने की जरूरत नहीं। केवल मेरा हस्ताक्षर होगा।"

सोफी ने संपूर्ण आज्ञा-पत्र पढ़कर सुनाया।

क्लार्क-"प्रिये, यह तुम बुरा कर रही हो।"

सोफी-"कोई परवा नहीं, मैं बुरा ही करना चाहती हूँ। हस्ताक्षर भी टाइप कर दूँ? नहीं (मुहरनिकालकर) यह मुहर किये देती हूँ।"

क्लार्क-"जो चाहे, करो। जब तुम्हें अपनी जिद के आगे कुछ बुरा-भला नहीं सूझता, तो मैं क्या कहूँ?"

सोफी-"कहीं और तो इसको नकल न होगी?"

क्लार्क-"मैं कुछ नहीं जानता।"

यह कहकर मि०-क्लार्क अपने शयन-गृह की ओर जाने लगे। सोफी ने कहा-"आज इतनी जल्दी नींद आ गई?"