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रंगभूमि


अगर आज तुम रियासत के हाथों पीड़ित, दलित, अपमानित और दंडित होकर मेरे सम्मुख आते, तो मैं तुम्हारी बलाएँ लेती, तुम्हारे चरणों की रज मस्तक पर लगाती और अपना धन्य भाग्य समझती। किंतु मुझे उस वस्तु से घृणा है, जिसे लोग सफल-जीवन कहते हैं। सफल-जीवन पर्याय है खुशामद, अत्याचार और धूर्तता का। मैं जिन महात्माओं को संसार में सर्वश्रेष्ठ समझती हूँ, उनके जीवन सफल न थे। सांसारिक दृष्टि मे वे लोग साधारण मनुष्यों से भी गये-गुजरे थे, जिन्होंने कष्ट झेले, निर्वासित हुए, पत्थरों से मारे गये, कोसे गये और अंत में संसार ने उन्हें बिना आँसू की एक बूंद गिराये बिदा कर दिया, सुरधाम को भेज दिया। तुम पुलिस का एक दल लेकर मुझे खोजने निकले हो। इसका उद्देश्य यही तो है कि प्रजा पर आतंक जमाया जाय! मेरी दृष्टि में जिस राज्य का अस्तित्व अन्याय पर हो, उसका निशान जितनी जल्द मिट जाय, उतना ही अच्छा। खैर, अब इन बातों से क्या लाभ! तुम्हें अपना सम्मान और प्रभुत्व मुबारक रहे, मैं इसी दशा से संतुष्ट हूँ। जिनके साथ हूँ, वे सहृदय हैं, वे किसी दीन प्राणी की रक्षा प्राण-पण से कर सकते हैं, उनमें तुमसे कहीं अधिक सेवा और उपकार के भाव मौजूद हैं।"

विनय खिन्न होकर बोले-"सोफी, ईश्वर के लिए मुझ पर इतना अन्याय मत करो। अगर मैं प्रभुता और मान-सम्मान का इच्छुक होता, तो मेरी दशा ऐसी हीन न होती। मैंने वही किया, जो मुझे न्याय-संगत जान पड़ा। मैं यथासाध्य एक क्षण के लिए भी न्याय-विमुख नहीं हुआ।"

सोफी-"यही तो शोक है कि तुम्हें वह बात क्यों न्याय-संगत जान पड़ी, जो न्याय-विरुद्ध थी! इससे तुम्हारी आंतरिक प्रवृत्ति का पता मिलता है। तुम स्वभावतः स्वार्थसेवी हो। मनुष्यों को सभी पदार्थ एक-से प्रिय नहीं होते। कितने ही ऐसे प्राणी हैं, जो कीर्ति के लिए धन को ठीकरों की भाँति लुटाते हैं। वे अपने को स्वार्थरहित नहीं कह सकते। स्वार्थपरता ऊँचे आदर्श से मेल नहीं खाती। जिसकी मनोवृत्ति इतनी दुर्बल है, उसकी कम-से-कम मैं इजत नहीं कर सकती, और इजत के बिना प्रेम कलंक का टीका बन जाता है।"

विनय उन मनुष्यों में न थे, जिन पर प्रतिकूल दशाओं का कोई असर नहीं होता। उन पर निराशा का शीघ्र ही आधिपत्य हो जाता था। विकल होकर बोले-"सोफी, मुझे तुमसे ऐसी आशा न थी। मैंने जो कुछ किया है, न्याय समझकर या परिस्थिति से विवश होकर ही किया है।"

सोफी—“संसार में जितने अकर्म होते हैं, वे भ्रम या परिस्थिति ही के कारण होते हैं। कोई तीसरा कारण मैंने आज तक नहीं सुना।"

विनय—"सोफी, अगर मैं जानता कि मेरी ओर से तुम्हारा हृदय इतना कठोर हो गया है, तो तुम्हें मुख न दिखाता।"

सोफ़ी—“मैं तुम्हारे दर्शनों के लिए बहुत उत्सुक न थी।"