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रंगभूमि


था, तब भोजन करता था और चार बजे सोता था। फिर नौ बजे पूजा पर बैठ जाता था और दो बजे रात को उठता था। वह एक घंटे के लिए सूर्यास्त के समय बाहर निकलता था। पर इतनी लंबी पूजा मेरे विचार में अस्वाभाविक है। मैं समझता हूँ कि यह न तो उपासना है, न आत्मशुद्धि की क्रिया, केवल एक प्रकार की अकर्मण्यता है।"

विनय का चित्त इस समय इतना व्यग्र हो रहा था कि उन्होंने इस कटाक्ष का कुछ उत्तर न दिया। सोचने लगे-अगर राजा साहब ने भी साफ जवाब दिया, तो मेरे लिए क्या करना उचित होगा? अभी इतने बेगुनाहों के खून से हाथ रंगे हुए हैं, कहीं सोफी ने गुप्त हत्याओं का अभिनय आरंभ किया, तो उनका खून भी मेरी ही गरदन पर होगा। इस विचार से वह इतने व्याकुल हुए कि एक ठंडी साँस लेकर आराम-कुर्सी पर लेट गये और आँखें बंद कर लीं। यों वह नित्य संध्या करते थे, पर आज पहली बार ईश्वर से दया-प्रार्थना की। रात-भर के जागे, दिन-भर के थके थे ही, एक झपकी आ गई। जब आँखें खुलीं, तो चार बज चुके थे। सेक्रटरी से पूछा-'अब तो हिज हाइनेस पूजा पर से उठ गये होंगे?”

सेक्रटरी—"आपने तो एक लंबी नींद ले ली।"

यह कहकर उसने टेलीफोन द्वारा कहा—"कुँवर विनयसिंह हिज हाईनेस से मिलना चाहते हैं।”

एक क्षण में जवाब आया—"आने दो।"

विनयसिंह महाराज के दीवाने खास में पहुँचे। वहाँ कोई सजावट न थी, केवल दीवारों पर देवतों के चित्र लटके हुए थे। कालीन के फर्श पर सफेद चादर बिछी हुई थी। महाराजा साहब मसनद पर बैठे हुए थे। उनकी देह पर केवल एक रेशमी चादर थी और गले में एक तुलसी की माला। मुख से साधुता झलक रही थी। विनय को देखते ही बोले-"आओ जी, बहुत दिन लगा दिये। मिटर क्लार्क की मेम का कुछ पता चला?"

विनय—"जी हाँ, वीरपालसिंह के घर है, और बड़े आराम से है। वास्तव में अभी मिस्टर क्लार्क से उसका विवाह नहीं हुआ है, केवल मांगनी हुई है। इनके पास आने पर राजी नहीं होती है। कहती है, मैं यहीं बड़े आराम से हूँ और मुझे भी ऐसा हो ज्ञात होता है।"

महाराजा—"हरि-हरि! यह तो तुमने विचित्र बात सुनाई! इनके पास आती ही नहीं! समझ गया, उन सबों ने वशीकरण कर दिया होगा। शिव-शिव! इनके पास आती ही नहीं!"

विनय—"अब विचार कीजिए कि वह तो जीवित है और सुखी है और यहाँ हम लोगों ने कितने ही निरपराधियों को जेल में डाल दिया, कितने ही घरों को बरबाद कर दिया और कितनों ही को शारीरिक दंड दिये।"

महाराजा—"शिव-शिच! घोर अनर्थ हुआ।"