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रंगभूमि


बजरंगी ने टूटी हुई जोड़ी उठा ली, और एक सिपाही के पास जाकर बोला-"जमादार, यह जोड़ी तोड़ डालने से तुम्हें क्या मिला? साबित उठा ले जाते, तो भला किसी काम तो आती! कुशल है कि लाल पगड़ी बाँधे हुए हो, नहीं तो आज......"

उसके मुँह से पूरी बात भी न निकली थी कि दोनो सिपाहियों ने उस पर डंडे चलाने शुरू किए, बजरंगी से अब जब्त न हो सका, लपककर एक सिपाही की गरदन एक हाथ से और दूसरे की गरदन दूसरे हाथ से पकड़ ली, और इतनी जोर से दबाई कि दोनो की आँखें निकल आई। जमुनि ने देखा, अब अनर्थ हुआ चाहता है, तो रोती हुई बजरंगी के पास आकर बोली-तुम्हें भगवान की कसम है, जो किसी से लड़ाई करो। छोड़ो-छोड़ो! क्यों अपनी जान से बैर कर रहे हो।”

बजरंगी-"तू जा बैठ। फाँसी पा जाऊँ, तो मैके चली जाना। मैं तो इन दोनो के प्राण ही लेकर छोडूंगा।"

जमुनी-"तुम्हें घीसू की कसम, तुम मेरा ही मास खाओ, जो इन दोनो को छोड़कर यहाँ से चले न जाओ।"

बजरंगी ने दोनो सिपाहियों को छोड़ दिया, पर उसके हाथ से छूटना था कि वे दौड़े हुए माहिरअली के पास पहुँचे, और कई और सिपाहियों को लिए हुए फिर आए। पर बजरंगी को जमुनी पहले ही से टाल ले गई थी। सिपाहियों को शेर न मिला, तो शेर की माँद को पीटने लगे, घर की सारी चीजें तोड़-फोड़ डालीं। जो अपने काम की चीज नजर आई, उस पर हाथ भी साफ किया। यहो लीला दूसरे घरों में भी हो रही थी। चारों तरफ लूट मची हुई थी। किसी ने अंदर से घर के द्वार बंद कर लिए, कोई अपने बाल-बच्चों को लेकर पिछवाड़े से निकल भागा। सिपाहियों को मकान खाली कराने का हुक्म क्या मिला, लूट मचाने का हुक्म मिल गया। किसी को अपने बरतन-भाँड़े समेटने की मुहलत भी न देते थे। नायकराम के घर पर भी धावा हुआ। माहिरअली स्वयं पाँच सिपाहियों को लेकर घुसे। देखा, तो वहाँ चिड़िया का पूत भी न था,घर में झाड़ फिरी हुई थी, एक टूटी हाँडी भी न मिली। सिपाहियों के हौसले मन ही में रह गए। सोचे थे, इस घर में खूब बढ़-बढ़कर हाथ मारेंगे, पर निराश और लज्जित होकर निकलना पड़ा। बात यह थी कि नायकराम ने पहले ही अपने घर की चीजें निकाल फेकी थीं।

उधर सिपाहियों ने घरों के ताले तोड़ने शुरू किर। कहीं किसी पर मार पड़ती थी, कहीं कोई अपनी चीजें लिए भागा जाता था। चिल-पों मची हुई थी। विचित्र दृश्य था, मानों दिन दहाड़े डाका पड़ रहा हो। सब लोग घरों से निकलकर या निकाले जाकर सड़क पर जमा होते जाते थे। ऐसे अवसरों पर प्रायः उपद्रवकारियों का जमाव हो ही जाता है। लूट का प्रलोभन था ही, किसी को निवासियों से बैर था, किसी को पुलिस से अदावत, अतिक्षणशंका होती थी कि कहीं शाति न भंग हो जाय, कहीं कोई हंगामा न मच जाय। साहिरअली ने जनसमुदाय की त्योरियाँ देखीं, तो तुरत एक सिपाही को