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रंगभूमि


जमीन की जरूरत है। यह क्योंकर हो सकता है कि और मकान गिरा दिए जायँ, और तुम्हारा झोंपड़ा बना रहे?"

सूरदास-"सरकार के पास जमीन की क्या कमी है। सारा मुलुक पड़ा हुआ है। एक गरीब की झोपड़ी छोड़ देने से उसका काम थोड़े ही रुक जायगा।”

राजा-"व्यर्थ की हुजत करते हो, यह रुपया लो, अँगूठे का निशान बनाओ, और जाकर झोपड़ी में से अपना सामान निकाल लो।"

सूरदास-“सरकार जमीन लेकर क्या करेगी? यहाँ कोई मन्दिर बनेगा? कोई तालाब खुदेगा? कोई धरमशाला बनेगी? बताइए।"

राजा-"यह मैं कुछ नहीं जानता।"

सूरदास-"जानते क्यों नहीं, दुनिया जानती है, बच्चा-बच्चा जानता है। पुतली घर के मजूरों के लिए घर बनेंगे। बनेंगे, तो उससे मेरा क्या फायदा होगा कि धर छोड़कर निकल जाऊँ! जो कुछ फायदा होगा, साहब को होगा। परजा की तो बरवादी ही है। ऐसे काम के लिए मैं अपना झोपड़ा न छोड़ेगा। हाँ, कोई धरम का काम होता, तो सबसे पहले मैं अपना झोंपड़ा दे देता। इस तरह जबरजस्ती करने का आपको अख्तियार है, सिपाहियों को हुक्म दे दें, फूस में आग लगते कितनी देर लगती है। पर यह न्याय नहीं है। पुराने जमाने में एक राजा अपना बगीचा बनवाने लगा, तो एक बुढ़िया की झोपड़ी बीच में पड़ गई। राजा ने उसे बुलाकर कहा, तू यह झोपड़ी मुझे दे दे, जितने रुपये कह, तुझे दे दूँ, जहाँ कह, तेरे लिए घर बनवा दूं। बुढ़िया ने कहा, मेरा झोपड़ा रहने दीजिए। जब दुनिया देखेगी कि आपके बगीचे के एक कोने में बुढ़िया की झोपड़ी है, तो आपके धरम और न्याय को बड़ाई करेगी। बगीचे को दीवार दस पाँच हाथ टेढ़ी हो जायगी, पर इससे आपका नाम सदा के लिए अमर हो जायगा। राजा ने बुढ़िया की झोपड़ी छोड़ दी। सरकार का धरम परजा को पालना है कि उसका घर उजाड़ना, उसको बरबाद करना?"

राजा साहब ने झुंझलाकर कहा-“मैं तुमसे दलील करने नहीं आया हूँ, सरकारी हुक्म की तामील करने आया हूँ।"

सूरदासू-"हजूर, मेरी मजाल है कि आपसे दलील कर सकूँ। मगर मुझे उजड़िए मत, बाप-दादों की निशानी यही झोपड़ी रह गई है, इसे बनी रहने दीजिए।'

राजा साहब को इतना अवकाश कहाँ था कि एक-एक असामी से घण्टों वाद-विवाद करते। उन्होंने दूसरे आदमी के बुलाने का हुक्म दिया।

इन्द्रदत्त ने देखा कि सूरदास अब भी वहीं खड़ा है, हटने का नाम नहीं लेता, तो डरे कि राजा साहब कहीं उसे सिपाहियों से धक्के देकर हटवा न दें। धीरे से उसका हाथ पकड़कर अलग ले गए, और बोले-"सूरे, है तो अन्याय; मगर क्या करोगे, झोंपड़ी तो छोड़नी ही पड़ेगी। जो कुछ मिलता है, ले लो। राजा साहब की बदनामी का डर है, नहीं तो मैं तुमसे लेने को न कहता।"