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रंगभूमि


आये हैं। हाकिमो के मन में, फौज के मन में, पुलिस के मन में जो दया और धरम का खयाल आता, उसे आप लोगों ने जमा होकर क्रोध बना दिया है। मैं हाकिमों को दिखा देता कि एक दोन, अंधा आदमी एक फौज को कैसे पीछे हटा देता है, तोप का मुँह कैसे बंद कर देता है, तलवार की धार कैसे मोड़ देता है! मैं धरम के बल से लड़ना चाहता था...।"

इसके आगे वह और कुछ न कह सका। मि० क्लार्क ने उसे खड़े होकर कुछ बोलते सुना, तो समझे, अंधा जनता को उपद्रव मचाने के लिए प्रेरित कर रहा है। उनकी घारणा थी कि जब तक यह आत्मा जीवित रहेगी, अंगों की गति बंद न होगी। इसलिए आत्मा ही का नाश कर देना आवश्यक है। उद्गम को बंद कर दो, जल-प्रवाह बंद हो जायगा। वह इसी ताक में लगे हुए थे कि इस विचार को कैसे कार्य-रूप में परिणत करें, किंतु सूरदास के चारों तरफ नित्य आदमियों का जमघट रहता था, क्लार्क को इच्छित अवसर न मिलता था। अब जो उसके सिर को ऊपर उठा हुआ देखा, तो उन्हें वह अवसर मिल गया। वह स्वर्णावसर था, जिसके प्राप्त होने पर ही इस संग्राम का अंत हो सकता था। इसके पश्चात् जो कुछ होगा, उसे वह जानते थे। जनता उत्तेजित होकर पत्थरों की वर्षा करेगी, घरों में आग लगायेगी, सरकारी दफ्तरों को लूटेगी। इन उपद्रवों को शांत करने के लिए उनके पास पर्यात शक्ति थी। मूल-मंत्र अंधे को समरस्थल से हटा देना था—यही जीवन का केंद्र है, यही गति-संचालक सूत्र है। उन्होंने जेब से पिस्तौल निकाली और सूरदास पर चला दिया। निशाना अचूक पड़ा। बाण ने लक्ष्य को बेध दिया। गोली सूरदास के कंधे में लगी, सिर लटक गया, रक्त प्रवाह होने लगा। भैरो उसे सँभाल न सका, वह भूमि पर गिर पड़ा। आत्मबल पशुबल का प्रतिकार न कर सका।

सोफिया ने मि० क्लार्क को जेब से पिस्तौल निकालते और सूरदास को लक्ष्य करते देखा था। उसको जमीन पर गिरते देखकर समझी, घातक ने अपना अभीष्ट पूरा कर लिया। फिटन पर खड़ी थी, नीचे कूद पड़ी और हत्याक्षेत्र की ओर चली, जैसे कोई माता अपने बालक को किसी अनेवाली गाड़ी की झपेट में देखकर दौड़े। विनय उसके पीछे-पीछे उसे रोकने के लिए दौड़े, वह कहते जाते थे-“सोफी! ईश्वर के लिए वहाँ न जाओ, मुझ पर इतनी दया करो। देखो, गोरखे बंदूकै सँभाल रहे हैं। हाय! तुम नहीं मानतीं।” यह कहकर उन्होंने सोफ़ी का हाथ पकड़ लिया और अपनी ओर खींचा1 लेकिन सोफी ने एक झटका देकर अपना हाथ छुड़ा लिया और फिर दौड़ी। उसे इस समय कुछ न सूझता था; न गोलियों का भय था, न संगीनों का। लोग उसे दौड़ते देखकर आप ही आप रास्ते से हटते जाते थे। गोरखों की दीवार सामने खड़ी थी, पर सोफी को देखकर वे भी हट गये। मि० क्लार्क ने पहले ही बड़ी ताकीद कर दी थी कि कोई सैनिक रमणियों से छेड़छाड़ न करे। विनय इस दीवार को न चीर सके। तरल वस्तु छिद्र के रास्ते निकल गई, ठोस वस्तु न निकल सकी।