नत्थू चाचा अकड़ कर बोले---"हाँ, इसमें क्या है। यह तो हम चुटकी बजाते कर सकते हैं।"
"और उच्चाटन भी!"
"हाँ! वह भी।"
"तो हमारा एक काम कर दीजिए।"
"क्या काम है।"
"हमारे एक पड़ोसो के पास भैंस है। भैंस क्या है पूरी हथिनी है। पन्द्रह सेर नम्बरी तौल से दूध देती है। वह हम लेना चाहते हैं।"
"खरीद क्यों नहीं लेते?"
"वह कमबख्त वेचता नहीं आप कुछ ऐसा कर दीजिए कि वह भैस हमें मिल जाय।
नत्थू चाचा कुछ देर विचार करके बोले---"यह कार्य उच्चाटन से सिद्ध हो सकता है। भैंस के स्वामी का उच्चाटन किया जाय जिससे वह उस भैंस को अपने यहाँ रक्खे! उस समय तुम उसे खरीद ले सकते हो।"
"हाँ! ऐसा कीजिए या ऐसा कर दीजिए कि भैंस का स्वामी अपनी खुशी से हमें भैस दे दे।"
"वह एक ही बात है!"
"एक बात नहीं है। अपनी खुशी से देगा तो दामों में किफायत हो जायगी, या दाम ही न ले।"
"ऐसा तो वशीकरण से ही हो सकता है।
"तो वही कीजिए।"
"इसमें खर्च पड़ेगा।"
"कितना खर्च पड़ेगा ?"
नत्थू चाचा ने कुछ क्षण सोच कर कहा---"पचीस रुपये के लगभग पड़ेगा।"
"तो रुपये काम हो जाने पर मिलेंगे।"
"पूजन-पाठ की सामग्री कहाँ से आवेगी?"