पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/११५

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बनवाया! मांस-मदिरा का भी प्रबन्ध किया। यह सब सामान बाँधकर और एक अपने शिष्य को साथ लेकर नत्थू चाचा गङ्गातट पर पहुंचे। इस स्थान से थोड़ी दूर पर श्मशान था।

नत्थू चाचा ने एक साफ-सुथरे स्थान पर आसन लगाया---पूजन की सब सामग्री अपने सन्मुख रक्खी शिष्य भी बैठा। इस प्रकार उन्होंने अपना कार्य आरम्भ किया।

गुरु-शिष्य दोनों ने मदिरा-पान किया और नशे में झूम-झूमकर स्तोत्रों का उच्चारण करने लगे। कुछ देर बाद शिवाबलि देने के लिए तैयारी की। एक पत्तल में, भोजन की जो सामग्री ले गये थे, रखकर तथा एक सिकोरे में मदिरा लेकर नत्थू चाचा अकेले ही एक ओर चले।

कुछ दूर निकल जाने पर उन्होंने एक स्थान पर पत्तल रख दी तथा मन्त्र पढ़कर ताली बजाई और 'शिवे' कह कर पुकारा।

इसी समय अन्धकार में से एक व्यक्ति निकलकर धीरे-धीरे उनकी ओर आता दिखाई पड़ा। बिलकुल नङ्ग-धड़ङ्ग, केवल एक लाल लंगोटा बांधे हुए काला भुजंगा, आँखें लाल, भयानक वेश, हाथ में त्रिशूल।

नत्थू चाचा आँख फाड़कर मंत्र-मुग्ध की भांति उसकी ओर देखते रहे। वह धीरे-धीरे चाचा के सम्मुख आया। चाचा भय से काँपने लगे, मुँह सूख गया।वह मूर्ति पाकर लगभग चार गज की दूरी पर खड़ी हो गई। चाचा थर-थर काँप रहे थे।

वह मूर्ति गम्भीर स्वर में बोलो--"दुष्ट आज तूने भ्रष्ट पूजन किया है। हमको और शिवा को बड़ा क्लेश हुआ। इसी कारण शिवा तेरे बुलाने पर नहीं आयी! बोल इसका क्या दन्ड दिया जाय।" अन्तिम वाक्य मूर्ति ने गर्जकर कहा।

चाचा की जीभ तालू से चिपक गई थी, इस कारण कुछ बोल न सके, हाथ जोड़कर चुपचाप खड़े रहे।

मूर्ति ने पुनः कड़ककर कहा--"उत्तर नहीं देता दुष्ट! अभी तुझे