पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/११७

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"भाग्यशाली की बात नहीं, साधना की बात है। हमने बहुत साधना की है, इसी से बच गये।"

"हमें तो चाचा इन बातों पर विश्वास नहीं है।"

"अभी लड़के हो।"

"चाचा । हमें कुछ सन्देह हो रहा है।"

"सन्देह कैसा

"रामसिंह को आप जानते ही हैं । वह सब जगह कहता फिरता है कि, मैंने भैरव बनकर चाचा के हवास ठिकाने कर दिये।"

चाचा कान खड़े करके बोले-"क्या कहता है ?"

"यही कि चाचा बड़े डरपोक आदमी हैं-बेहोश होकर गिर पड़े।"

"बकता है ! उसका इतना साहस कहाँ हो सकता है जो इतनी रात में वहाँ जाय।"

"पता नहीं ! कहता तो यही है।"

"झख मारता है।"

चाचा ने विश्वास नहीं किया । चाचा के स्वास्थ्य लाभ करने पर चाचा लगे दून को हाँकने ।

परन्तु जब यह दून को हाँकते तब लोग कह देते-"बस देख लिया । उस दिन रामसिंह को देखकर घिग्घी बंध गई, औंधे मुह गिरे।चले हैं बड़े तान्त्रिक बनकर ।"

चाचा कड़क कर कहते-"वह झक मारता है ससुरा-इतना सफेद भूठ ! रामसिंह की इतनी हिम्मत है कि रात में उस स्थान पर जा सके ?"

"वह अकेला नहीं था। दो आदमी और थे, जो वहाँ से कुछ दूर पर खड़े थे।"

"बस रहने दो-हम ऐसी बात नहीं सुनना चाहते।"

वह समाप्त हो गई, परन्तु लड़के चाचा से कहते--"चाचा हमको