पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१२६

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वैषम्य


( १ )

रायबहादुर बाबू श्यामाचरण एक धनाढ्य व्यक्ति हैं। जमींदारी तथा जायदाद से उन्हें पाँच छः हजार रुपये मासिक को आय हो जाते है। नगर में इनकी एक सुन्दर कोठी है---इसी कोठी में इनका निवास है।

बाबू साहब की वयस पचास के लगभग हैं। दो पुत्रा तथा एक पुत्री है, जिनमें से सबसे छोटा अभी अविवाहित है।

संध्या के ७ बज चुके थे। बाबू साहब अपने मित्रों सहित कोठी के सामने घास के लान पर बने हुए गोल चबूतरे पर विराजमान थे। श्वेत मेजपोश से ढकी हुई एक गोल मेज चबूतरे के बीचोबीच लगी थी। इसके चारों ओर कुर्सियाँ लगी हुई थीं---इन्हीं पर सब लोग विराजमान थे।

सहसा बाबू साहब जम्हुवाई लेकर बोले---"अब समय हो गया।"

"हाँ और क्या! मंगवाइये!" ब्रजनन्दन नामक व्यक्ति ने कहा।

बाबू साहब ने किंचित गर्दन घुमाकर कुछ उच्च स्वर से कहा-- "अब लाओ!"

कुछ दूर पर दो बेरा खड़े थे। बाबू साहब की बात सुनकर वे दोनों कोठी के अन्दर चले गये।

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