झने नेइ शकटा।" ब्रजनन्दन ने बोखल की भाँति कहा।
"देखिए। क्या क्या बोलियाँ याद हैं---यह भला कभी भूखा रह सकता है?"
"और बरसात में खूब बोलता है।"
रायबहादुर साहब बोले--"अब खाना मँगाया जाय। क्यों?"
"हाँ मंगवाइये!"
( २ )
रायबहादुर साहब की कोठी के निकट ही कुछ क्वार्टर बने हुए थे। इन क्वार्टरों में नौकरी पेशा वाले गरीब लोग रहा करते थे। इन्हीं में एक ठाकुर परिवार रहता था। इस परिवार में चार व्यक्ति थे। एक पचास वर्षीय वृद्ध---नाम श्यामसिंह, उसकी पत्नी और दो सन्तानें जिनमें एक बालिका आयु दस वर्ष, एक बालक आयु पन्द्रह वर्ष! श्यामसिंह एक कारखाने में काम करता था। वेतन पचीस रुपये मासिक मिलता था। इन्हीं पचीस रुपयों में चार प्राणी अपना गुजर करते थे।
इतवार का दिन था। श्यामसिंह दोपहर के समय अपनी पत्नी से वार्तालाप कर रहा था। पत्नी कह रही थी---'अब रामू को कहीं काम में लगाना चाहिए---गुजारा नहीं चलता।"
"मैं चाहता था कि साल दो साल और ठहर जाऊँ, फिर काम में लगाऊँ।"
"क्या बतावें, पढ़ लेता तो अच्छा ही था पर।"
"आज कल पढ़ाई इतनी मँहगी है कि गरीब आदमी तो पढ़ा ही नहीं सकता।"
"कोई ऐसा काम मिल जाय जो इसके लायक हो! ज्यादा मेहनत का काम तो उससे नहीं होगा।"
"देखो कुछ तो करना ही पड़ेगा। कहाँ गया है?"
"कहीं गया होगा।"