पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१५५

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"सो तो रखना ही पड़ेगा।"

बाह्मण देवता तो इतनी बात करके चल दिये। इधर लालाजी मुनीम जी से बोले—"पाव भर भीग मंगा लेना।"

"पाव भर में क्या होगा—आध सेर मंगाओ।"

"आध सेर सही। चाहे सुसरी मंहगी हो चाहे सस्ती पर कोई काम बन्द नहीं हो सकता। रंग क्या भाव होगा?"

"क्या जानें—इधर कुछ पता नहीं है।"

"दस-बीस रुपये का रङ्ग भी खर्च हो जायगा।"

"टेसू के फूलों का रंग बनवा लेना-सस्ते में बन जायगा।"

"खाली पीला बनेगा। लड़के तो हरा-लाल मांगेंगे। दो-पिचकारी पावेंगी। पिचकारी भी बड़ी महंगी होंगी।

"सस्ती कौन चीज है लाला।"

"ठीक कहते हो कपड़ा तो सरकार ने सस्ता कर दिया और चीज सस्ती नहीं की। हम कपड़े वालों का गला दबा दिया।"

"कपड़ा भी कोई अधिक सस्ता नहीं हुआ।"

"हम लोग तो मारे गये। दो पिचकारी ले आना-जरा अच्छे मेल की। आज कल लड़कों के मिजाज भी आसमान पर रहते हैं—ऐसी वैसी चीज पसन्द नहीं आती।"

सेठ जी उन लोगों में हैं जो सब काम करेंगे और काफी पैसा खर्च करके करेंगे, परन्तु प्रत्येक कार्य करने के पहले एक बार रो-झींक अवश्य लेंगे।

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एक महाशय अपनी मित्र मण्डली में विराजमान हैं। एक मित्र कह रहा है—"होली का त्योहार भी बड़ा मस्त त्योहार है!

"क्या बात है। इस बार कोई नई बात होनी चाहिए।"

"क्या नई बात होनी चाहिए?"

"बस यह समझ लो कि बस-।"