पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
-१४८-
 

दिन जीना है---शान से जियेंगे।"

महाशय जी ने पचास रुपये दे दिये। ये लोग उन लोगों में हैं जो लंगोटी में फाग खेलते हैं। इन्हें यह चिन्ता नहीं है कि कल क्या होगा। वर्तमान को देखते हैं और उससे अधिकाधिक लाभ उठाने का प्रयत्न करते हैं।

एक रईस का कमरा। रईस महोदय कुछ लोगों से वार्तालाप कर रहे हैं।

"बाग में किस दिन की होली होगी।" एक ने पूछा।

"जिस दिन चाहेंगे हो जायगी।"

"हीराबाई इवेंगी?"

"क्यों न आवेगी---वह भी आवेंगी अपनी सहेलियों को भी लावेंगी!" रईस ने कहा।

"तब तो शानदार होली होगी। हौज भराया जायगा?"

"हाँ---टेसू के फूल मंगाये हैं---उन्हीं का रंग बनवाकर भरा देंगे। डब्बे के रंग में बहुत रुपया खर्च होगा।"

"क्या जरूरत है। टेसू का रंग बहुत बढ़िया होता है-बसन्ती।"

"पहले डब्बे का रंग था कहाँ। यही टेसू और अन्य वनस्पतियों के रंग बनते थे।"

"बड़े अच्छे रहते थे। डब्बे के रंग ने उनका चलन ही बन्द कर दिया।"

"डब्बे के रंग सस्ते पड़ने लगे थे इससे उन्हीं का चलन हो गया था। अब रंग मंहगे हैं इस लिए फिर वनस्पतियों का रंग चालू हुआ है।"

"अरे भाई हीराबाई को एक साड़ी देनी पड़ेगी---आजकल साड़ियाँ बड़ी महंगी हैं।"

"दे दीजिएगा कोई---पन्द्रह-बीस में मिल जायगी।"

"पन्द्रह बीस में मामूली मिलेगी।"