पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१५९

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"इसमें कुछ सुधार होना चाहिए।"

"बिना स्वराज्य हुए, सुधार नहीं हो सकता। जब आर्डिनेन्स लगाया जाय तब सुधार हो और आर्डिनेन्स बिना स्वराज्य हुए लग नहीं सकता।"

"क्यों?"

"ब्रिटिश सरकार को क्या गरज है जो आर्डिनेन्स लगावे। अभी लोग शोर मचाने लगें कि धार्मिक कामों में हस्तक्षेप करती है। अपनी सरकार पर यह धौंस चलेगी नहीं।"

"जितने दिन होली रहती है, घर से निकलना दूभर हो जाता है । निकलो तो दुर्दशा कराओ।"

"हम तो कहीं बाहर चले जायँगे।"

"जहाँ जायँगे वहाँ भी तो होली ही मिलेगी।"

"सब जगह यह बात नहीं है। अन्य जगह केवल एक दिन रंग चलता है---यहाँ की तरह आठ-आठ दिन तक ऊधम नहीं मचता।"

"हाँ यह बात तो है। यहाँ का तो मामला ही दूसरा है। तीन लोक से मथुरा न्यारी।"

"हमारा बस चले तो हम इस त्योहार को ही बन्द करवा दें।"

"देखिये कभी बस चलेगा ही।"

यह सज्जन उन लोगों में हैं जिन्हें सब त्योहार बुरे ही लगते हैं। होली में हुरदङ्ग मचता है इसलिए होली खराब। दिवाली में जुआ खेला जाता है इसलिए दिवाली दो कौड़ी की। दशहरे पर राम-रावण की नकल होती है--यह बुरा है। श्रावणी पर ब्राह्मणों की लूट होती है इसलिए वह भी रद्दी। कोई त्योहार आता है तो इन महाशय का खून जलता है, परन्तु मजबूर हैं बस नहीं चलता। स्वराज्य को प्रतीक्षा में हैं, क्योंकि स्वराज्य में ये सब त्योहार बन्द करा दिये जायँगे। जब सब त्योहार बन्द हो जायंँगे तब यह महाशय सन्तोष की सांँस लेंगे।