पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१७३

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पूर्वोक्त घटना हुए पाँच वर्ष व्यतीत हो गए। घनश्यामदास पिछली बातें प्रायः भूल गए हैं; परन्तु उस बालिका की याद कभी-कभी आ जाती है। उसे देखने वे एक बार कानपुर गए भी थे; परन्तु उसका पता न चला। उस घर में पूछने पर ज्ञात हुआ कि वह वहाँ से, अपनी माता सहित बहुत दिन हुए, न जाने कहाँ चली गई। इसके पश्चात् ज्यों-ज्यों समय बीतता गया, उसका ध्यान भी कम होता गया, पर अब भी जब वे अपना बक्स खोलते हैं, तब कोई वस्तु देखकर चौंक पड़ते हैं और साथ ही कोई पुराना दृश्य भी आँखों के सामने आ जाता है।

घनश्याम अभी तक अविवाहित हैं। पहले तो उन्होंने निश्चय कर लिया था कि विवाह करेंगे ही नहीं; पर मित्रों के कहने और स्वयं अपने अनुभव ने उनका विचार बदल दिया। अब वे विवाह करने पर तैयार हैं, परन्तु अभी तक कोई कन्या उनकी रुचि के अनुसार नहीं मिली!

जेठ का महीना है। दिन-भर की जला देने वाली धूप के पश्चात् सूर्यास्त का समय अत्यन्त सुखदायी प्रतीत हो रहा है। इस समय घनश्यामदास अपनी कोठी के बाग में मित्रों सहित बैठे मन्द-मन्द शीतल वायु का आनन्द ले रहे हैं। आपस में हास्यरस-पूर्ण बातें हो रही हैं। बातें करते-करते एक मित्र ने कहा—अजी अभी तक अमरनाथ नहीं आए?

घनश्याम—वह मनमौजी आदमी है। कहीं रम गया होगा।

दूसरा—नहीं रम नहीं, वह आजकल तुम्हारे लिए दुलहन ढूँढ़ने की चिंता में रहता है।

घनश्याम—बड़े दिल्लगी-बाज हो।

दूसरा—नहीं, दिल्लगी की बात नहीं है।

तीसरा—हाँ, परसों मुझसे भी वह कहता था कि घनश्याम का विवाह जाय, तो मुझे चैन पड़े।

ये बातें हो ही रही थीं कि अमरनाथ लपकते हुए आ पहुँचे।