तक क्या था आज क्या हो गया।" "यही बात है सरकार! दुनिया में किसी चीज पर भरोसा करना गलती है। यहाँ अपना कुछ नहीं।" "क्यों भई, हम लोग सही सलामत हिन्दुस्तान पहुँच जाँयगे?" बाबू साहब ने पूछा।
"चले चलिए! हिम्मत न हारिये। अगर जिन्दगी हैं तो पहुँच ही जाँयगे, नहीं तो एक दिन तो मरना ही है।"
"अरे भई मौत के डर से तो बर्मा छोड़ा---घर-वार माल-असबाब छोड़ा। परन्तु उससे छुटकारा न मिला। इससे तो वहीं बने रहते तो अच्छा था।" "जी जो नहीं मानता। उस समय यही समझ में आया कि भाग चलने में ही बचत है। लेकिन बाबू जी आपने काफी पेट्रोल साथ नहीं लिया यह गलती की।"
क्या बतावें भई। पेट्रोल के दो टीन जल्दी में रह गये। तकदीर की बात है। निकाल कर धरे लेकिन कार पर रखना भूल गये। जब दूर निकल आये तब याद आया अगर वे होते तो फिर क्या था। लेकिन तकदीर से कौन लड़ सकता है।"
"यही बात है। लाख उपाय करो, पर एक नहीं चलता। बताइये! पेट्रोल ही रखना भूल गए। वाह रे भाग्य!"
"तुम वर्मा में क्या करते थे?" बाबू साहब ने उस व्यक्ति से पूछा।
"नौकरी!"
बाबू साहब ने इस व्यक्ति को गौर से देखा। यह व्यक्ति गरीब मालूम होता था, परन्तु हृष्ट-पुष्ट तथा बलवान था---वयस पेंतीस के लगभग होगी। बाबू साहब ने पूछा---"तुम्हारे बाल-बच्चे?"
"बाल बच्चे तो हिन्दुस्तान में हैं। कौन बाल-बच्चे! खाली घर- वाली है। अभी दो महीने हुए तब चिटठी मिली थी कि उसके लड़का हुआ है।"
"वह किसके पास है?"
"अपने मायके में है।"
कुछ क्षण चुप रह कर बाबू साहब बोले--"तुम हमारे साथ रहो!