पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१८१

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हम सकुशल हिन्दुस्तान पहुँच गये तो तुम्हें अपने यहाँ रख लेंगे।"

"मैं तो अब आप ही के साथ हूँ। हिन्दुस्तान पहुंँचने पर देखा जायगा।"

"तुम्हारा नाम क्या है?"

"रामभजन लाल।"

( २ )

चलते-चलते सन्ध्या हो गई। रामभजन लाल बोला---"अब कहीं ठहर जाना चाहिए---बाबू! रात बिता कर सवेरे चलेंगे।"

बाबू साहब बोले---"कहाँ ठहरेंगे।"

"यहीं किसी पेड़ के तले और ठिकाना ही कहाँ है।" रामभजन ने कहा।

अतएव एक वृक्ष के तले कम्बल बिछा कर ये चारों बैठ गये। राम भजन अपनी पीठ पर गठरी लादे था। उसे खोल कर उसने एक दरी निकाल कर अपने लिए बिछाई। टिफिन केरियर खोल कर चारों ने थोड़ा-थोड़ा भोजन किया। रामभजन को भी खाने को कहा गया, पर वह बोला---"आप अपने लिए रखिए--मेरे पास खाने को है। अभी आपको कई दिन काटने हैं।"

"क्या है?" बाबू साहब ने पूछा।

"ऐसे ही सटर-पटर है। भुने चावल हैं, और कुछ चने हैं। सब खा डाले, अब थोड़े रह गये हैं---दो तीन दिन भर को हैं। मुझे तो चलते आठदिन हो गये। आप मोटर में आये इससे जल्दी आ गये। हाँ पानी नहीं है---पानी थोड़ा आपको देना पड़ेगा।"

थर्मस बोतल से थोड़ा-थोड़ा पानी सबने पिया---थोड़ा, रामभजन को भी दिया। लड़का तो तुरन्त सो गया--स्त्रियाँ भी लेट गई। बाबू साहब बैठे रहे। रामभजन बोला---"ऐसी मुसीबत कभी न उठाई होगा बाबू!"

"मुसीबत! हमें तो इस मुसीबत का कभी स्वप्न में भी ध्यान नहीं आया था।"