पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
-१७४-
 

ये साले पहरा लगाये हैं।"

इसी समय कुछ अन्य लोग जो इन लोगों के साथ-साथ चल रहे थे पानी लेने के लिए उधर गये।

बर्मियों ने तलवारों से उन्हें धमकाया और रुपये मांगने लगे। कुछ ने रुपये देकर पानी पिया। कुछ लोग लोटा लिए हुए थे उन्होंने लोटे भरने चाहे तो बर्मियों ने उसके लिए भी रुपये माँगे। बाबू साहब बोले---"भई पानी तो लेना चाहिए।"

रामभजन ने उन बर्मियों से बात की तो उन्होंने इन पाँचों को पानी पिला देने तथा बोतल और रामभजन का लोटा भर देने के सौ रुपये मांँगे। बाबू साहब ने तुरन्त सौ रुपये के नोट निकाल कर दे दिए और पानी पीकर बोतल तथा लोटा भर लिया। कुछ लोग जिनके पास बर्मियों को देने के लिए काफी रुपये नहीं थे खड़े मुँह ताकते रहे।

एक व्यक्ति रामभजन से बोला---"भई एक लोटा हमारा भी भरवा देते।"

रामभजन बोला---"देखते नहीं हो तलवारें चमका रहे हैं। बिना रुपये लिए भला ये लोग देंगे?"

"हम तो प्यासों मर जायँगे।"

रामभजन ने दृष्टि डाली---कुल पन्द्रह बीस आदमी थे। इनमें से अनेकों के पास लाठियाँ थीं। रामभजन भी लाठी लिए हुए था। रामभजन अलग हट कर उन लोगों से बोला---"प्यासों में मरने तो यह अच्छा है कि पानी लेने के प्रयत्न में मारे जाओ। हम लोग पन्द्रह बीस हैं---ये चार! क्या हम लोग इन्हें मार के भगा नहीं सकते?"

"अरे भाई इनके पास तलवारें हैं।"

"बड़े कायर हो तुम लोग। अच्छा पहला वार मैं करूंगा---बोलो, है हिम्मत!"

सबने सलाह की। सलाह करके यह निश्चय किया कि प्यासों मरने से तो यह अच्छा है कि यहीं लड़-भिड़ कर मर जाँय! रामभजन से सबने अपना निर्णय कहा। रामभजन बोला---"तब ठीक है। बाबू