पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१८४

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साहब आप स्त्रियों और लड़के को लेकर आगे बढ़ जाइये और हमारा इन्तजार कीजिए।"

बाबू साहब बोले---"चलो जी, तुम भी किस झगड़े में पड़ गए।"

"यह झगड़ा नहीं है बाबू!" जीवन-मरण का प्रश्न है। आप चलिए, मैं अभी आता हूं।" विवश होकर बाबू साहब अपने परिवार सहित आगे बढ़ गये। इधर रामभजन तथा अन्य लोग उन बर्मियों के पास पुनः पहुँचे। बर्मी समझे कि पानी खरीदने आते हैं। पास पहुँच कर रामभजन ने एक दम से एक बर्मी पर लाठी का वार किया। लाठी कड़ाक से उसके सर पर पड़ी और वह चक्कर खाकर गिर पड़ा। अन्य लोगों ने शेष उन तीन पर लाठियाँ बरसा दीं। परन्तु वे तीनों जान लेकर भागे। कुछ ही मिनटों में मैदान साफ हो गया। रामभजन बोला--"अब पियो जितना पानी चाहो और अपने-अपने बरतन भर लो। जरा सी हिम्मत करने से काम बन गया।"

सबने खूब छक कर पानी पिया और जिसके पास जो पात्र था वह भर लिया। रामभजन बोला---"अब चलो तेज कदम---ऐसा न हो कि वे लोग मदद लेकर आ जाँय रामभजन ने उस बर्मी की, जो बेहोश पड़ा था, तलाशी ली। उसके पास बाबू साहब के नोट तथा अन्य रुपये निकले। वह सब रामभजन ने ले लिए। बाबू साहब के नोट रख कर अन्य रुपये उसने उन आदमियों को दे दिये।

बाबू साहब के पास पहुँच कर रामभजन बोला---"लीजिए अपने रुपये।"

बाबू साहब अचकचा कर बोले "ये कैसे मिले।"

"छीन लिए सालों से! और कैसे मिले।"

बाबू साहब बोले "शाबाश! इन्हें अपने ही पास रक्खो।"

रामभजन बोला, "आप रख लीजिए फिर मैं ले लूँगा। अब जरा तेज कदम चलिए।"

सब लोग लपक कर चले। लड़का बहुत थक गया था, चल नहीं पा रहा था, उसे रामभजन ने अपने कन्धे पर बिठा लिया अन्य लोग राम-