पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/२००

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सकुशल सम्पन्न करा देने का कितना खयाल है । स्वयं अपना प्रबन्ध करके आपके सब कार्य करा देती है।"

“यह क्या बात हुई । प्रबन्ध करना तो सरकार का कर्तव्य है।"

"निस्सन्देह ! जब आप लोग अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकते तब सरकार को करनी पड़ती है।"

"हाँ यह बात तो ठीक है । यह अच्छा भी है । सरकारी प्रबन्ध में अपना सब कार्य निश्चिन्तापूर्वक हो जाता है ।

"इसमें क्या सन्देह है । चिन्ता को हम लोग पास भी नहीं फटकने देना चाहते । इसी कारण चिन्ता करने का काम सरकार को करना पड़ता है।"

"शासक का यही कर्तव्य है।"

"बिलकुल ! और शासित का यह कर्तव्य है कि वह सब चिन्ताओं का भार शासक पर छोड़ कर सुख की नींद सोवे ।"

"और क्या ! जनता को चिन्ता करने की क्या आवश्यकता है।"

"ठीक बात है । ऐसी दशा में स्वराज्य मांगना बिलकुल व्यर्थ है। क्योंकि स्वराज्य मिल जाने पर चिन्ता करने का भार भी अपने ही ऊपर आ पड़ेगा---उस दशा में सुख की नींद कैसे सोइयेगा ?"

“यह तो बनी बनाई बात है । क्या आप समझते हैं कि यदि भारत स्वतन्त्र होता तो इस युद्ध की भाग से बच सकता था ?"

"कभी नहीं। इस युद्ध में भारत तो बेदाग ही रहा ।"

"बिलकुल ! लाखों भारतीय सैनिक कट गये, बंगाल में लाखों आदमी अन्नभाव से मर गये, लाखों को कपड़े नहीं मिले, पेट भर भोजन नहीं मिला, भारत का करोड़ों रुपया युद्ध की भेट हो गया । ये सब आराम स्वराज्य में कहाँ नसीब होते ।"

"ये आराम नहीं कष्ट की बातें थी-यह मानना पड़ेगा, परन्तु जो देश युद्ध में रत थे उनकी दशा तो यहाँ से भी अधिक खराब है । उनको तुलना में तो भारत का कष्ट बहुत कम है । जापान और जर्मनी की दशा देखिये, चीन की हालत पर विचार कीजिए।"