पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/२६

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"सार्जेण्ट लड़के को दूसरे कमरे में ले गया। वहाँ लड़के का नाम, मुहल्ला इत्यादि सब लिख लिया गया और उसके अँगूठे का निशान तथा फोटो लिया गया। इसके पश्चात उससे कहा गया––तुम्हारा नम्बर १४०५ है! समझे? यहाँ आकर अथवा किसी जर्मन अफसर के पूछने पर यही नम्बर बताना––नाम किसी को मत बताना। बहुत होशियारी से रहना। किसी को यह पता न लगे कि तुम हमारे लिए काम कर रहे हो।"

"बहुत अच्छा, ऐसा ही होगा।" लुई ने कहा।

"अच्छा तो तुम अब जा सकते हो। कल इसी समय आकर अपनी रिपोर्ट देना।"

"बहुत अच्छा।"

यह कहकर लुई विदा हुआ।

लुई जर्मन कमाण्डर के निवासस्थान से निकल कर सीधा अपने घर पहुँचा। उसके पीछे-पीछे एक जर्मन गुप्त रूप से लगा हुआ था। जब लुई अपने मकान के अन्दर चला गया तो गुप्तचर वापस लौट गया। लुई का पिता तथा उसकी माता बैठे बात कर रहे थे। लुई को देखकर उसके पिता ने पूछा––"क्या हुआ?"

"ठहरिये पिताजी, पहले मैं कपड़े बदल आऊँ!"

यह कहकर लुई एक छोटे से कमरे में घुस गया। कुछ क्षण पश्चात् जब वह बाहर निकला तो लड़का न होकर लड़की था। केवल सिर के बालों को छोड़कर जो पुरुषों जैसे थे, अन्य सब प्रकार से वह लड़की थी।

उसकी माता बोल उठी––"विग (नकली बाल) पहन लो बेटी।"

"ओ भूल गई!"

यह कहकर वह पुनः कमरे में चली गई और दूसरे ही क्षण बाहर निकल आई अब उसके बाल जनाने थे। माता के बगल में कुर्सी पर बैठते हुए वह बोली––'ओफ! अब जान में जान आई! मैं तो बहुत डर रही थी कि कहीं जर्मन मुझे पहचान न लें कि यह लड़की है। जान