नहीं प्राप्त कर सकती। इसको ले सकती है केवल जगत् के कल्याण की, मानव जाति के उपकार की भावना।"
"इसका पहिला प्रयोग तो चूहा पर हो चुका, दूसरा किस पर होगा?" शीला ने पूछा।
"तुम पर शीला। सबसे प्रथम तुम इसकी अधिकारिणी हो, क्योंकि तुमने इसके निर्माणकाल में मेरे वियोग, मेरी सहचरहीनता का क्लेश भोगा है!"
शीला गद्गद् होकर पति से लिपट गई!
× × ×
शीला एक बिस्तर पर अज्ञानावस्था में लेटी है। प्रोफेसर उसके पलँग के पास बैठे हैं। कालेज से उन्होंने एक सप्ताह की छुट्टी ले ली है। प्रोफेसर रात-दिन शीला के पलंग के पास ही रहते हैं। क्रमशः शीला का शरीर परिवर्तित होने लगा। उसकी ढीली पड़ती हुई खाल पुनः खिंचकर नवयौवना तरुणी की जैसी हो गई, उसके बाल जिन पर कालिमा का रङ्ग कुछ फीका हो चला था, पुनः काले तथा चमकीले हो गये, उसकी ढलती हुई मांस-पेशियाँ फिर सुदृढ़ तथा पुष्ट हो गई, उसके गौर वर्ण में जो पीलापन आ चला था वह लालिमा में परिवर्तित हो गया!
एक सप्ताह पश्चात् प्रोफेसर ने शीला की बेहोशी दूर की। उसे फलों का रस पीने को दिया। तीन-चार दिन में शीला उठकर बैठने लगी।
शीला ने पूछा---"क्या हुआ था?"
"तुम्हें क्या मालूम होता है शीला?"
"मुझे तो अपने शरीर में एक अद्भुत शक्ति और उल्लास का अनुभव हो रहा है।"
"अच्छा अब अपना मुँह देखो!" यह कहकर प्रोफेसर ने उसके हाथ में एक दर्पण दिया। दर्पण में अपना मुँह देखकर शीला के नेत्र