बोला-"मेरी नाव पर तो आज ही दोनों गयी थीं।"
"कथा-वाचक भी साथ गये थे।"
"नहीं वह दूसरी नाव पर थे।"
"रेती में अकेले दोनों गये थे।'
"साथ तो गये नहीं। पहले कथा-वाचक जी चले गये थे, फिर वह औरत गयी थी। कथावाचक जी रोज जाते हैं।
चार दिन पश्चात् जब दद्दू सबेरे स्नान करने गये तो गंगापुत्र बोला--"दद्दू कल रात तो कथा-वाचक जी पकड़े गये।"
दद्दू किंचित् मुस्कराकर बोले---"अच्छा! क्यों?"
"एक औरत को भगाये लिये जा रहे थे। पहिले तो इधर से नाव द्वारा रेती में गये। रेती पार करके धारा में पहुँचे। वहाँ नाव लगी थी उस पर बैठकर उस पार पहुँचे। बस जैसे ही उस पार पहुँचे---धर लिए गये। जान पड़ता है पहले से ही वहाँ आदमी लगे थे।"
"मैंने कहा था कि कोई काण्ड होने वाला है।'
"हाँ दद्दू आपने तो कहा था।'
दूसरे दिन जब दद्दू स्नान करने गये तो गंगापुत्र बोला---'लाओ दादा तुम्हारे चरण छूलें।
"क्यों-क्यों?"
"हमें सब मालूम हो गया।"
"क्या मालूम हो गया। दद्दू ने पूछा।
"जिन्होंने कथा-वाचक को पकड़ा वह आपके ही आदमी थे।"
दद्दू हँसने लगे।
"खूब ताड़ा दद्दू!"
"यह कथा कैसी रही?"
"बहुत बढ़िया। वह औरत कौन थी।'
"अब इससे तुम्हें क्या मतलब! हमें किसी भले आदमी की बद- नामी नहीं करनी है।"
"कथा का असली पुण्य तो आपने लूटा।"