पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/६८

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"कहीं नहीं। ऐसे ही चले आये ।"

"हरामखोरी को निकले होगे। शाम का समय है।"

चीफ साहब हँसकर बोले---'दुनियाँ ही हरामखोरी पर उतर आई है तब हम क्या उल्लू हैं जो हलालखोरी को पकड़े बैठे रहें।"

गुन्डा हँस कर बोला---"ठीक कहते हो।"

इसी समय सामने के छज्जे पर से एक युवती वेश्या ने तमोली को पुकार कर कहा---लछमन भइया। आठ पान और एक डिब्बी सिगरेट भेज दो।"

गुन्डा हँस कर बोला---"क्यों लछमन भइया तुम्हारी बहिन है?"

यदि और कोई ऐसी बात कह देता तो लछमन बिगड़ उठता; क्योंकि वह भी बदमाश था; परन्तु गुरू के सामने बोलने का साहस उसमें नहीं था। इस कारण वह मुस्कराकर बोला---'वाह गुरू ऐसी कहोगे! हमारी बहिन ससुरी काहे को है। और वैसे तो पराई औरत मां-बहिन के बराबर ही होती है।"

"यह कहो! आज कल तो बड़े साधू बने हुए हो। लेकिन एक बात तो बताओ यह कौशल्या किसी के पास नौकर है क्या?"

"अभी नई आई है। हमारी जान में तो अभी कहीं नौकर नहीं है।"

"तब भी ससुरी इतनी लम्बी-चौड़ी बात करती है। इसे किसी दिन ठीक करना है। ऊपर चढ़ जाऊँगा और दो सौ जूते गिन कर मारूंँगा---सारी नखरेवाजी भूल जायगी। अभी हमें पहचानती नहीं है।"

"अब पहचान लेगी।" चीफ साहब बोले।

"और आप बोलियेगा नहीं। चीफ साहब यह बताये देता हूँ।"

"हमें क्या मतलब है। ससुरी को जूतों से मारो या चाहे जो करो।"

"और बोलना तो हम से पूछ लेना--हम तुम्हें कुछ पैदा करा देंगे।"