हमने कह दिया जिसे आप लोग देंगे। और क्या कहता?" करीम नामक व्यक्ति बोला।
"ठीक है। हमने तो एक दफा वोट डाला था, बहुत दिन हुए। अच्छी तरह याद नहीं कि कैसा क्या हुआ था––डिस्टक बोरड की तरह होते होंगे।"
"जब बखत आवेगा तब सब मालूम हो जायगा।"
"हमारा तो गाँव जिसे देगा––उसी को हम भी देंगे। गाँव के खिलाफ थोड़ा ही जा सकते हैं।"
"ठीक बात है गाँव के खिलाफ चलकर रहेंगे कहाँ?"
"सुना है––खुदा जाने सच है कि झूठ कि एक सुसलमानों की तरफ से खड़े होंगे और एक काँग्रेस की तरफ से।"
करीम के कान खड़े हुए, उसने पूछा––"यह क्या कहा––काँग्रेस की तरफ से?"
"हाँ सुना है कि एक मुसलमान तो मुसलमानों की तरफ से खड़ा होगा और एक काँग्रेस की तरफ से।"
"तो भइया एक बात है गाँव वाले तो काँग्रेस वालों को देंगे।"
"हाँ सो तो बनी बनाई बात है।"
"तब तो हमारी मुस्किल है। हमें मुसलमानों की तरफ़ वाले को देना चाहिए।"
"हाँ––यह भी ठीक कहते हो।"
"अरे तो इस मामले में हिन्दू लोग जोर नहीं देंगे।"
"हाँ जोर तो न देना चाहिए। हम मुसलमानों का मामला हम मुसलमान जाने। हम लोग तो उनके मामले में दखल नहीं देते।"
"मगर एक बात जरूर है––काँग्रेस का बड़ा जोर है।"
करीम ने पूछा––"काहे चचा तो हिन्दू तो किसी हिन्दू को वोट देंगे।"
"हाँ सो तो देंगे ही।"