पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/८६

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के बल से भी हस्तगत नहीं कर सकता---ऐसा मेरा विश्वास है और इसीलिए मैं शर्त बद रहा हूँ।"

"तो रही शर्त?" रायबहादुर साहब ने पूछा।

"हाँ रही। जो कह दिया सो कह दिया उसको अब नहीं बदलूँगा।"

"तो बस ठीक है। कितना लेगी ससुरी हजार, दो हजार, चार हजार दस हजार!"

"बस। दस हजार तक का वजट रक्खा है।"

"बजट तो और बढ़ सकता है। अब तो शर्त बदी है न! चाहे जो खर्च हो जाय। परन्तु इतने से अधिक खर्च नहीं होगा।"

"अच्छी बात है।"

इसके पश्चात् खेल देखने लगे। खेल समाप्त होते होते श्वेताङ्ग लड़की एक बार पुनः दूसरी ड्रेस में पाई जो पहले से भी अधिक आकर्षक था। इस बार उसका खेल समाप्त होने पर रायबहादुर साहब ने खूब ताली बजाई। जोर से चिल्ला कर 'एक्सीलेन्ट' 'ग्रेण्ड' इत्यादि शब्दों का उच्चारण किया। श्वेताङ्ग लड़की एक बार इनकी ओर देख कर मुस्करा दी! रायबहादुर साहब कृतकृत्य हो गये।

( ३ )

दूसरे दिन रायबहादुर साहब के गण छूटे। तीन चार दिन में लड़की से रायबहादुर साहब का परिचय हो गया। लड़की एक अंग्रेजी होटल में ठहरी हुई थी। लड़की के साथ लड़की का पिता तथा बड़ा भाई भी था। ये तीनों 'स्पेनिश' ( स्पेन-देशीय ) थे। लड़की का नाम ईसाबेला था। बाप का नाम पीडो तथा लड़के का वेलेनटीनो था। वेलेनटीनों भी सर्कस का खेलाड़ी था, पिता घोड़ों की देख-रेख का काम करता था।

रायबहादुर साहब इन लोगों से एक बार नित्य मिलते थे। कभी