पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/८८

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"तुम सर्कस की नौकरी छोड़ दो।"

"क्यों?"

"जितनी तनख्वाह तुम वहाँ पाती हो उतनी मैं तुम्हें दूंगा।"

ईसाबेला हंस पड़ी। बोली---"तनख्वाह की क्या बात है! मुझे अपनी कला से प्रेम है।"

"तो अब तुम कला का प्रेम छोड़ कर मुझ से प्रेम करो।" यह कहकर रायबहादुर साहब ने ईसाबेला के गले में बाई बाँह डाल दी और उसका चुम्बन किया। ईसाबेला ने पीछे सरक कर एक तमाचा रायबहादुर साहब के गाल पर मारा और स्पेनिश भाषा में न जाने क्या कहने लगी।

रायबहादुर साहब अंग्रेजी जानते थे, स्पेनिश भाषा नहीं जानते थे अतः वह नहीं समझ सके कि ईसाबेला क्या कह रही है, परन्तु इतना अनुमान लगा लिया कि सम्भवतः गालियाँ दे रही है।

रायबहादुर साहब ने अपनी बाँह खींच ली और झट अपनी जेब से चेक बुक निकाली, फाउन्टेन पेन निकाला और चेक बुक खोल कर वह बोले---"बताओ तुम्हें कितना रुपया चाहिए---बतानो उतना लिख दूँ।"

ईसाबेला ने एक तमाचा और जड़ा। इस बार वह अँग्रेजी में बोली "बेवकूफ गँवार हिन्दुस्तानी। समझता है मैं रुपया पैदा करने के लिए सर्कस की नौकरी करती हूँ। वह मेरी कला है, मेरा शौक है। लाख रुपये के लिए भी मैं उसे नहीं छोड़ सकती।"

यह कहकर ईसाबेला कार से उतर पड़ी।

रायबहादुर साहब---"क्यों! क्यों!" कहते रहे। ईसाबेला पैदल ही चल दी। कुछ दूर चलने पर एक खाली तांगा मिल गया, उसे लेकर वह चली गई।

रायबहादुर साहब कुछ क्षण बैठे सोचते रहे तत्पश्चात् कार लेकर चल दिये।