पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/९६

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"तो ऐसा उत्तर दूंगा कि याद करेंगें। तुम देखती तो जाओ मैं दो चार बरस में ही लड़के को वहाँ का मालिक बना दूंँगा।"

( ३ )

कुछ दिन पश्चात् पण्डित रामशरण ने लड़के को ससुराल भेज दिया और अपने सम्बन्धी को पत्र लिखा। "प्रिय भाई साहब, चिरंजीव कृष्ण शरण को आपके पास भेजता हूँ। यह मेरे वश का नहीं है। दुकान का काम नहीं देखता, इधर उधर घूमने-फिरने में समय बर्बाद करता रहता है। यहाँ इसकी संगत भी कुछ ऐसे लोगों से हो गई है जिनका चरित्र अच्छा नहीं है। इन सब बातों को ध्यान में रख कर मैं इसे आप के पास भेजता हूँ। आप इसे किसी काम में लगाइये। वहाँ रह कर यह सुधर जायगा। योग्य सेवा लिखते रहें।'

भवदीयः---रामशरण

कृष्ण शरण ससुराल पहुंँच गया। उसके श्वसुर ने पण्डित राम शरण को लिखा---

"प्रिय भाई जी, चिरंजीव कृष्णशरण आगया है। आप ने बड़ा अच्छा किया जो चिरंजीव को यहाँ भेज दिया। यहाँ कुछ दिन रहकर ठीक हो जायगा। प्रकट में तो उसका व्यवहार ऐसा नहीं है जो यह कहा जा सके कि वह आप के प्रतिकूल चलता होगा। खैर, जो भी हो! यहाँ महीना-दो महीना रहने से सब ठीक हो जायगा।

योग्य सेवा लिखते रहें।"

भवदीय---शंकर प्रसाद

यह पत्र पाकर पण्डित रामशरण बहुत हँसे। पत्नी से बोले--- "लिखते हैं महीना दो महीना रहने से, यह नहीं कहते कि अब वह वहीं रहेगा।"

"वह रक्खेंगे तब तो रहेगा।" पत्नी ने कहा।

"रक्खेंगे नहीं तो जायगे कहाँ। कृष्णशरण जब यहाँ आने को