पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१०५

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रघुवंश ।

सब के आगे तो लोगों को उसका प्रताप-उसका यश-विदित हुआ; उसके पीछे उसकी सेना का तुमुल नाद सुनाई पड़ा;उसके अनन्तर आकाश में छाई हुई धूल देख पड़ी; और सब के पीछे रथ, हाथी, घोड़े, पैदल आदि दिखाई दिये । इससे यह भासित होने लगा कि वह सेना चार भागों में बँटी हुई, अर्थात् चतुरङ्गिनी, सी है । रघु की प्रचण्ड सेना ने निर्जल मरुस्थलों को सजल कर दिया-मार्ग में यदि उसे कोई ऐसा प्रदेश मिला जहाँ पानी की कमी थी तो उसने तत्काल ही कुंवे आदि खुदा कर उसे जलमय कर डाला। बिना नाव के और किसी तरह पार न की जाने योग्य बड़ी बड़ी नदियों पर उसने पुल बंधवा कर पैरों से ही चल कर पार की जाने योग्य कर दिया। मार्ग में भयङ्कर वनों के आ जाने पर उन्हें कटा कर उसने मैदान कर दिया। बात यह कि उसके पास इतनी सेना थी और वह इतना शक्तिसम्पन्न था कि कोई प्रदेश और कोई स्थान ऐसा न था जो उसके लिए अगम्य होता। अपनी अनन्त सेना को पूर्वी समुद्र की तरफ़ ले जानेवाला वह राजा, शङ्कर के जटाजूट से छूटी हुई गङ्गा को ले जाने वाले भगीरथ के समान,मालूम होने लगा। वन के भीतर प्रविष्ट हुआ हाथी जिस तरह कुछ वृक्षों के फल ज़मीन पर गिराता,कुछ को जड़ से उखाड़ता और कुछ को तोड़ता ताड़ता आगे बढ़ता चला जाता है उसी तरह राजा रघु भी कुछ राजाओं से दण्ड लेता,कुछ को पदच्युत करता और कुछ को युद्ध में हराता-अपना मार्ग निष्कण्टक करता हुआ बराबर आगे चला गया।

इस प्रकार,पूर्व के कितने ही देशों को दबाता हुआ वह विजयी राजा, ताड़-वृक्षों के वनों की अधिकता के कारण श्यामल देख पड़नेवाले महासागर के तट तक जा पहुँचा । वहाँ सुझ देश (पश्चिमी बङ्गाल) के राजा ने,वेतस-वृत्ति धारण करके,सारे उद्धत राजाओं को उखाड़ फेंकनेवाले रघु से अपनी जान बचाई । वेत के वृक्ष जिस तरह नम्र होकर-मुक कर-नदी के वेग से अपनी रक्षा करते हैं उसी तरह सुम-नरेश ने भी नम्रता दिखा कर-अधीनता स्वीकार करके-रघु से अपनी रक्षा की। सुम देश-वालों के इस उदाहरण से वङ्ग-देश के राजाओं ने लाभ न उठाया। उन्हें इस बात का गर्व था कि हमारे पास जल-सेना बहुत है। लड़ाकू जहाज़ों