पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१०७

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रघुवंश।

स्नान किया हुआ सा-जीत के उपलक्ष्य में यथाशास्त्र अभिषिक्त हुआ सा-मालूम होने लगा। उसके योद्धाओं ने इस जीत की बेहद खुशी मनाई। उन्होंने,समीपवर्ती महेन्द्र-पर्वत के ऊपर,मद्य-पान करने की ठानी । इस निमित्त उन्होंने एक स्थान को सजा कर उसे खूब रमणीय बनाया। फिर वहीं एकत्र होकर,सबने,बड़े बड़े पान पत्तों के दोनों में,नारि- यल का मद्य पिया । इतना ही नहीं, किन्तु साथ ही उन्होंने अपने शत्रुओं का यश भी पान कर लिया। राजा रघु धर्मविजयी था। दूसरों के राज्य छीन कर उन्हें मार डालना उसे अभीष्ट न था । क्षत्रियों के धर्म के अनुसार, केवल विजय-प्राप्ति के लिए ही,उसने युद्ध-यात्रा की थी। इससे उसने कलिङ्ग-देश के राजा को पकड़ तो लिया,पर पीछे से उसे छोड़ दिया। उसकी सम्पत्ति मात्र उसने ले ली;राज्य उसका उसी को लौटा दिया।

इस प्रकार पूर्व-दिशा के राजाओं को जीत कर रघु ने,समुद्र के किनारे ही किनारे,दक्षिणी देशों की तरफ प्रस्थान किया। कुछ दिन बाद,बिना यत्न और इच्छा के ही विजय पानेवाला वह विजयी राजा,फलों से लदे हुए सुपारी के वृक्षों से परिपूर्ण मार्ग से चल कर,कावेरी-नदी के तट पर जा पहुँचा। वहाँ,हाथियों के गण्डस्थल से निकले हुए मद से सुगन्धित हुए उसके सैन्य ने उस नदी में जी खोल कर जलविहार किया। रघु ने उसे,इस प्रकार,क्रीड़ा करने की आज्ञा देकर,नदीनाथ समुद्र को,कावेरी के सतीत्वसम्बन्ध में, सन्देहयुक्त सा कर दिया। समुद्र के मन में,उस समय, यह शङ्का सी होने लगी कि मुझे छोड़ कर, क्या यह कावेरी अब सदा रघु के सैन्य-समुदाय ही का उपभोग करती रहेगी ?

बहुत दूर तक चलने के अनन्तर उस विजयशील राजा की सेना मलयाचल के पास पहुँच गई । वहाँ उसने देखा कि पर्वत की तराई मिर्च के वृक्षों से परिपूर्ण है और चारों तरफ़ हरियल पक्षी कलोलें कर रहे हैं। अतएव उस स्थान को बहुत ही रम्य और सुभीते का समझ कर रघु ने वहीं अपनी सेना को डेरे लगाने की आज्ञा दे दी । इस तराई में इलायची के वृक्षों की भी अधिकता थी। ढेरों इलायची उनके नीचे ज़मीन पर पड़ी थी। रघु के घोड़ों की टापों से वह चूर्ण हो गई । अतएव उसके दानों की रज उड़ स्ड़ कर मतवाले हाथियों पर जा गिरी और उनके मस्तकों से अपनी ही