पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१०९

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रघुवंश।

समुद्र ठेठ सह्याद्रि तक आ गया है । रघु का सेना-समूह, समुद्र की तरह,सह्याद्रि तक फैला हुआ था।

सेना के सह्याद्रि पार कर जाने पर राजा रघु ने केरलदेश पर चढ़ाई की । अतएव वहाँ के निवासी अत्यन्त भयभीत हो उठे । स्त्रियों ने तो मारे डर के अपने आभूषण तक शरीर से उतार कर फेंक दिये । यद्यपि उन्होंने अपने शरीर को भूषण-रहित कर दिया तथापि रघु की बदौलत उन्हें एक आभूषण अवश्य ही धारण करना पड़ा । वह आभूषण रघु की सेना के चलने से उड़ी हुई धूल थी । वह धूल उन स्त्रियों की कुमकुम-रहित अलकों पर जा गिरी और कुमकुम की जगह छीन ली ।अतएव जहाँ वे कुमकुम लगाती थीं वहाँ उन्हें रेणु धारण करनी पड़ी।

उस समय मुरला नामक नदी के ऊपर से आई हुई वायु ने केतकी के फूलों का पराग चारों तरफ़ इतना उड़ाया कि रघु के सेना-समूह पर उसकी वृष्टि सी होने लगी । अतएव बिना किसी परिश्रम या प्रयत्न के ही उस पराग ने रघु के योद्धाओं के कवचों पर गिर कर उन्हें सुगन्धि-युक्त कर दिया। सुगन्धित उबटन की तरह वह कवचों पर लिपट रहा।

रघु की सेना के घोड़ों पर पड़े हुए कवचों से,चलते समय,ऐसी गम्भीर ध्वनि होती थी कि पवन के हिलाये हुए ताड़-वृक्षों के वनों से निकली हुई ध्वनि उसमें बिलकुल ही डूब सी जाती थी-वह सुनाई ही न पड़ती थी।

पड़ाव पड़ जाने पर रघु के हाथी खजूर के पेड़ों की पेड़ियों से बाँध दिये जाते थे। उस समय उनके मस्तकों से निकले हुए मद की सुगन्धि दूर दूर तक फैल जाती थी। इससे नागकेसर के पेड़ों पर गूंजते हुए भौरे उन पेड़ों की सुगन्धि को कुछ न समझ कर, हाथियों के मस्तकों पर उड़ उड़ कर आ बैठते थे।

सुनते हैं,बहुत प्रार्थना करने और दबाव डाले जाने पर,समुद्र ने, पीछे हट कर,परशुराम के लिए थोड़ी सी भूमि दे दी थी। परन्तु, राजा रघु को उसने,अपने पश्चिमी तट पर राज्य करने वाले राजाओं के द्वारा,कर तक दे दिया । यह सच है कि रघु को राजाओं के हाथ से ही कर मिला । परन्तु यह एक बहाना मात्र था। यथार्थ में उस कर-दान का प्रेरक