पृष्ठ:रघुवंश.djvu/११४

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चौथा सर्ग।

( ब्रह्मपुत्रा ) नामक नदी को पार करके प्राग्ज्योतिष-देश (आसाम ) पर अपनी सेना चढ़ा ले गया । उस देश में कालागुरु के वृक्षों की बहुत अधिकता है । राजा रघु के महावतों ने उन्हीं से अपने हाथियों को बाँध दिया। इससे,हाथियों के झटकों से इधर वे वृक्ष थर्राने लगे,उधर प्राग्ज्योतिष का राजा भी रघु के डर से थर थर काँपने लगा।

राजा रघु के रथों के दौड़ने से इतनी धूल उड़ी कि सुर्य छिप गया और आसमान में मेघों का कहीं नामो निशान न होने तथा पानी का एक बूंद तक न गिरने पर भी सर्वत्र अन्धकार छा गया--महा दुर्दिन सा हो गया । यह दशा देख प्राग्ज्योतिष का राजा बेतरह घबरा उठा। वह रघु के रथ मार्ग की धूल का घटाटोप ही न सह सका,पताका उड़ाती हुई उसकी सेना का धावा उस बेचारे से कैसे सहा जाता ?

कामरूप का राजा बड़ा बली था। उसकी सेना में अनेक मतवाले हाथी थे। उनके कारण अब तक वह किसी को कुछ न समझता था। हाथियों की सहायता से वह कितनेही राजाओं को परास्त भी कर चुका था । परन्तु इन्द्र से भी अधिक पराक्रमी रघु का मुका- बला करने के लिए उसके भी साहस ने जवाब दिया । अतएव जिन मत्त हाथियों से उसने अन्यान्य राजाओं को हराया था उन्हीं को रघु की भेंट करके उसने अपनी जान बचाई। वह रघु की शरण गया और उसके चरणों की कान्तिरूपिणी छाया को, उसके सुवर्णमय सिंहासन की अधिष्ठात्री देवी समझ कर,रत्नरूपी फूलों से उसकी पूजा की-रघु को रत्नों की ढेरी नज़र करके उसकी अधीनता स्वीकार की।

इस प्रकार दिग्विजय कर चुकने पर,अपने रथों की उड़ाई हुई धूल को छत्ररहित किये गये राजाओं के मुकटों पर डालता हुआ,वह विजयी राजा लौट पड़ा । राजधानी में सकुशल पहुँच कर उसने उस विश्वजित्ना मक यज्ञ का अनुष्ठान प्रारम्भ कर दिया जिसकी दक्षिणा में यजमान को अपना सर्वस्व दे डालना पड़ता है। उसे ऐसाही करना मुनासिब भी था। क्योंकि,समुद्र से जल का आकर्षण करके जिस तरह मेघ उसे फिर पृथ्वी पर बरसा देते हैं,उसी तरह सत्पुरुष भी सम्पत्ति का

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