पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१२४

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पाँचवाँ सर्ग।


हो। आपकी जितनी इच्छायें थीं सब परिपूर्ण हो चुकी हैं। उन्हीं में से फिर किसी इच्छा को परिपूर्ण करने के लिए आशीर्वाद देना पुनरुक्ति मात्र होगी। ऐसे चर्वित चर्वण से क्या लाभ ? इस कारण, मेरा यह आशीर्वाद है कि जिस तरह आपके पिता दिलीप ने आपके सहश प्रशंसनीय पुत्र पाया, उसी तरह, आप भी, अपने सारे गुणों से सम्पन्न, अपने ही सहश एक पुत्र-रत्न पावें!"

राजा को यह आशीर्वाद देकर कौत्स ऋषि अपने गुरु वरतन्तु के आश्रम को लौट गया। उधर गुरु को दक्षिणा देकर उसके ऋण से उसने उद्धार पाया, इधर उसका आशीर्वाद भी शीघ्रही फलीभूत हुआ। जिस तरह प्राणिमात्र को सूर्य से प्रकाश की प्राप्ति होती है उसी तरह कौत्स के आशीर्वाद से राजा रघु को पुत्र की प्राप्ति हुई। अभिजित् नाम के मुहूर्त में उसकी रानी ने स्वामिकार्तिक के समान पराक्रमी पुत्र उत्पन्न किया। यह मुहूर्त ब्राह्ममुहूर्त कहलाता है, क्योंकि इसके देवता ब्रह्मा हैं। इसी से रघु ने अपने पुत्र का नाम भी तदनुरूप ही रखना चाहा। ब्रह्मा का एक नाम 'अज' भी है। रघु को यही नाम सब से अधिक प्रसन्द आया। इस कारण उसने पुत्र का भी यही नाम रक्खा। जिस तरह किसी दीपक से जलाया गया दूसरा दीपक ठीक पहले के सदृश होता है, उसी तरह वह बालक भी अपने पिता रघु के ही संदृश हुआ। क्या रूप में, क्या तेज में, क्या बल में, क्या वीर्य में, क्या स्वाभाविक उदारता और उन्नति में सभी बातों में वह अपने पिता के तुल्य हुआ; भिन्नता उसमें ज़रा भी न हुई।

यथासमय अजकुमार ने विद्योपार्जन प्रारम्भ किया। कितने ही विद्वान् अध्यापक उसे पढ़ाने के लिए नियत किये गये। धीरे धीरे उसने उनसे सारी विद्यायें विधिपूर्वक पढ़ डाली।

तब तक वह तरुण भी हो गया। अतएव उसकी शरीर-कान्ति और भी बढ़ गई-उसका रूप-लावण्य पहले से भी अधिक हो गया। इस कारण राज्यलक्ष्मी उसे बहुत चाहने लगी। रघु को पाने के लिए वह मन ही मन उत्कण्ठित हो उठी। परन्तु जिस तरह भले घर की उपवर कन्या, किसी योग्य वर को पसन्द कर लेने पर भी, उसके साथ विवाह करने के लिए, पिता की आज्ञा की प्रतीक्षा में रहती है, उसी तरह उत्तर-कोशल