पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१२७

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रघुवश।

देखा त्योंही, अकेला होने पर भी, उन उतने हाथियों से भिड़ने के लिए वह तैयार हो गया। उसके शरीर में वीरता का आवेश उत्पन्न होते ही उसके मस्तक से फिर मद की धारा बहने लगी। सप्त-पर्ण नामक वृक्ष के दूध के समान उग्र गन्ध वाला उसका मद रघु के हाथियों से सहा न गया। उसका सुवास मिलते ही वे सारे हाथी अधीर हो उठे। यद्यपि उनके महावतों ने उनको अपने वश में रखने का बहुत कुछ यत्न किया,तथापि उनकी सारी चेष्टाये व्यर्थ हो गई । सेना के समस्त हाथी अपनी अपनी दुमें दबा कर, और उस जङ्गली हाथी की तरफ़ पीठ करके, वहाँ से तत्काल भाग निकले।

राजा रघु के शिविर में उस जङ्गली हाथी का प्रवेश होते ही सर्वत्र हाहाकार मच गया। जितने ऊँट, घोड़े और बैल थे, सब अपने अपने बन्धन तोड़ कर भागे । इस कारण, रथों के जुए टूट गये और वे इधर उधर अस्त व्यस्त हो उलटे पलटे जा गिरे। हाथी को आता देख बड़े बड़े योद्धाओं तक के होश उड़ गये; स्त्रियों की रक्षा करने के लिए वे इधर उधर दौड़-धूप करने लगे। सारांश यह कि उस हाथी ने उस उतनी बड़ी सेना को एक पल में बेतरह व्याकुल कर डाला।

शास्त्र की आज्ञा है कि राजा को जङ्गली हाथी न मारना चाहिए। इस बात को अजकुमार जानता था। अतएव, जब उसने देखा कि यह हाथी मुझ पर आघात तकरने के लिए दौड़ा चला ही आ रहा है तब उसने धीरे से धनुष को खींच कर सिर्फ उसके मस्तक पर इस इरादे से एक बाण मारा कि वह वहीं से लौट जाय, आगे न बढ़े। हाथी राजाओं के बड़े काम आते हैं । इसीसे युद्ध के सिवा और कहीं उन्हें मारना मना है। यहाँ युद्ध तो होता ही न था, इसी से अजकुमार ने उस पर ज़ोर से बाण नहीं मारा । केवल उसे वहाँ से भगा देना चाहा। अज का बाण लगते ही उस प्राणी ने हाथी का रूप छोड़ कर बड़ा ही रमणीय रूप धारण किया। उसे आकाश में निर्विघ्न विचरण करने योग्य शरीर मिल गया। उस समय उसके शरीर के चारों तरफ़ प्रकाशमान प्रभा-मण्डल उत्पन्न हो गया। उसके बीच में उस सुन्दर शरीर वाले व्योमचारी को खड़ा देख कर रघु की सेना आश्चर्य-सागर में डूब गई । इसके अनन्तर उस गगनचर ने अपने सामर्थ्य से कल्पवृक्ष के फूल ला कर अज पर बर-