पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१२९

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रघुवंश।


उनमें युद्ध करने की शक्ति ही नहीं रह जाती। अतएव, इस शस्त्र का प्रयोगकर्ता अवश्य ही विजयी होता है। इस बात को आप अपने मन में हरगिज़ न आने दें कि आपने तो मुझ पर बाण मारा और मैं आपको उसके बदले यह अस्त्र देने जाता हूँ। इसमें लज्जा की कोई बात नहीं; क्योंकि मेरे मारने के लिए धनुष उठाने पर भी आपके मन में, क्षण भर के लिए, मुझ पर दया आ गई। इससे आपने मुझे मारा नहीं। मेरा मस्तक बाण से छेद कर ही मुझे आपने छोड़ दिया। इस कारण, इस अस्त्र को ले लेने के लिए मैं जो आपसे प्रार्थना कर रहा हूँ, उसे आपको मान लेना चाहिए। अपने मन को कठोर करके उसका तिरस्कार करना आपको उचित नहीं।"

चन्द्रमा के समान समस्त संसार को आनंद देने वाले अजकुमार ने गन्धर्व की इस प्रार्थना को मान लिया। उसने कहा:-"बहुत अच्छा; आपकी आज्ञा मुझे मान्य है।" यह कह कर अज ने सोमसुता नर्म्मदा का पवित्र जल लेकर आचमन किया। फिर उसने उत्तर की ओर मुँह करके, शाप से छूटे हुए उस गन्धर्व से उस सम्मोहन-अस्त्र-सम्बन्धी मन्त्र ग्रहण कर लिये।

इस प्रकार, दैवयोग से, मार्ग में, जिस बात का कभी स्वप्न में भी ख़याल न था वह हो गई। अकस्मात् वे दोनों एक दूसरे के मित्र हो गये। इसके अनन्तर वह गन्धर्व तो कुवेर के उद्यान के पास वाले प्रदेश की तरफ़ चला गया, क्योंकि वह वहीं का रहने वाला था; और, अजकुमार ने उस विदर्भ देश की राह ली जिसका राजा अपनी प्रजा का यथा न्याय पालन करता था, और जहाँ की प्रजा ऐसे अच्छे राजा को पाकर, सब प्रकार सुखी थी।

यथासमय अज विदर्भ नगरी के पास पहुँच गया और नगर के बाहर अपनी सेना सहित उतर पड़ा। उसके आने का समाचार पाकर विदर्भ- नरेश को परमानन्द हुआ। चन्द्रोदय होने पर, जिस तरह समुद्र अपनी बड़ी बड़ी लहरें ऊँची उठा कर चन्द्रमा से मिलने के लिए तट की तरफ बढ़ता है, उसी तरह विदर्भाधिप भी अजकुमार को अपने यहाँ ले आने के लिए आगे बढ़ा और जहाँ वह ठहरा हुआ था वहाँ जाकर उससे भेंट की। वहाँ से उसने अज को साथ लिया और सेवक के समान उसके आगे