पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८२
रघुवंश।

की पंक्तियों में विभक्त होकर एक ही साथ चमक उठती है उस समय का दृश्य बड़ा ही अद्भुत होता है। उस समय उसकी प्रभा इतनी बढ़ जाती है कि दर्शकों की आँखों को वह अत्यन्त ही असह्य हो जाती है। यही हाल,उस समय,स्वयंवर में एकत्र हुए राजाओं की शोभा का भी था। राज-लक्ष्मी यद्यपि अनेक नहीं, एक ही थी; तथापि उन सैकड़ों राजाओं की पंक्तियों में विभक्त होकर,एक ही साथ,जो उसके अनेक दृश्य दिखाई दिये उन्होंने उसकी प्रभा को बेतरह बढ़ा दिया । शरीर पर धारण किये गये रत्नों और वस्त्रालङ्कारों की जगमगाहट से दर्शकों की आँखों के सामने चकाचौंध लग गई। उनके नेत्र चौंधिया गये । राजाओं पर नज़र ठहरना मुश्किल हो गया। तथापि,अज की सी तेजस्विता किसी में न पाई गई । बड़े ही सुन्दर वस्त्राभरण धारण करके, बहुमूल्य सिंहासनों पर बैठे हुए उन सारे राजाओं के बीच,अपने सर्वाधिक सौन्दर्य और तेज के कारण,रघुनन्दन अज--कल्पवृक्षों के बीच पारिजात की तरह-सुशोभित हुआ । अतएव,फूलों से लदे हुए सारे वृक्षों को छोड़ कर भौंरे जिस तरह महा सुगन्धित मद चूते हुए जङ्गली हाथी पर दौड़ जाते हैं उसी तरह सारे राजाओं को छोड़ कर पुरवासियों के नेत्र-समूह भी अजकुमार पर दौड़ गये । सब लोग उसे ही एकटक देखने लगे।

इतने में राजाओं की वंशावली जानने वाले वन्दीजन,स्वयंवर में आये हुए सूर्य तथा चन्द्रवंशी राजाओं की स्तुति करने लगे। रङ्ग-भूमि को सुवासित करने के लिए जलाये गये कृष्णागुरु चन्दन की धूप का धुवाँ,राजाओं की उड़ती हुई पताकाओं के भी ऊपर, फैला हुआ सब कहीं दिखाई देने लगा। मङ्गल-सूचक तुरही और शङ्ख आदि बाजों की गम्भीर ध्वनि दूर दूर तक दिशाओं को व्याप्त करने लगी;और,उसे मेघगर्जना समझ कर,नगर के आस पास उद्यानों में रहने वाले मोर आनन्द से उन्मत्त होकर नाचने लगे । यह सब हो ही रहा था कि अपने मन के अनुकूल पति प्राप्त करने की इच्छा रखने वाली राजकन्या इन्दुमती,विवाहोचित वस्त्र धारण किये हुए,सुन्दर पालकी पर सवार,और कितनी ही परिचारिकाओं को साथ लिये हुए,आती दिखाई दी। मण्डप के भीतर,दोनों तरफ़ बने हुए मञ्चों के बीच, चौड़े राज मार्ग में, उसकी पालकी रख दी गई।