पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१३७

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रघुवंश।

कन्धे पर पड़ा हुआ दुशाला अपनी जगह से जरा खिसक गया था। इस कारण उसका एक छोर,रत्न जड़े हुए उसके भुजबन्द से,बार बार उलझ जाता था। इन्दुमती पर अपना अनुराग प्रकट करने के लिए उसे यह अच्छा बहाना मिला। अतएव, पहले तो उसने उलझे हुए छोर को छुड़ाया; फिर,अपना मनोमोहक मुख ज़रा टेढ़ा करके, बड़े ही हाव-भाव के साथ,उसने दुशाले को अपने कन्धे पर अच्छी तरह सँभाल कर रक्खा । इस लीला से उसका चाहे जो अभिप्राय रहा हो; पर इन्दुमती ने इससे यह अर्थ निकाला कि इसके शरीर में कोई दोष जान पड़ता है। उसी को अपने दुशाले से छिपाने का यह यत्न कर रहा है।

एक राजा को कुछ और ही सूझी। उसने अपनी आँखें ज़रा टेढ़ी करके,कटाक्षपूर्ण दृष्टि से,नीचे की तरफ़ देखा । फिर,उसने अपने एक पैर की उँगलियाँ सिकोड़ लों। इससे उन उँगलियों के नखों की आभा तिरछी होकर सोने के पायदान पर पड़ने लगी। यह खेल करके वह उन्हीं उँगलियों से पायदान पर कुछ लिखने सा लगा--उनसे वह रेखायें सी खींचने लगा। इस तरह उसने शायद इन्दुमती को अपने पास आने का इशारा किया; परन्तु इन्दुमती को उसका यह काम अच्छा न लगा। बात यह है कि नखों से ज़मीन पर रेखायें खींचना शास्त्र में मना किया गया है। इससे इन्दुमती ने ऐसा निषिद्ध काम करने वाले राजा को त्याज्य समझा।

एक अन्य राजा ने अपने बायें हाथ की हथेली को आधे सिंहासन पर रख कर उस तरफ़ के कन्धे को ज़रा ऊँचा उठा दिया। उठा क्या दिया,इस तरह हाथ रखने से वह आप ही आप ऊँचा हो गया। साथ ही इसके उसके कण्ठ में पड़ा हुआ हार भी, हाथ और पेट के बीच से निकल कर, पीठ पर लटकता दिखाई देने लगा। अपने शरीर की स्थिति में इस तरह का परिवर्तन करके, अपनी बाँई ओर बैठे हुए अपने एक मित्र राजा से वह बातें करने लगा। इसका भी यह काम इन्दुमती को पसन्द न आया । उसने मन में कहा-इस समय इसे मेरे सम्मुख रहना चाहिए,न कि मुझसे मुँह फेर कर-पराङ मुख होकर-दूसरे से बाते करना । जब अभी इसका यह हाल है तब यदि मैं इसी को अपना पति बनाऊँ तो न मालूम यह कैसा सुलूक मेरे साथ करे!