पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१४

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कालिदास का समय।


आविष्कार मैंने किया है उसका इङ्गित मुझे स्मिथ साहब और मुग्धानलाचार्य्य से मिला था। उसी इशारे पर मैंने अपने अनुमान की इमारत खड़ी की है। मेरी सारी कल्पनायें और तर्कनायें मेरी निज की हैं। इनके अनुसार कालिदास ईसा की चौथी शताब्दी के अन्त और पाँचवीं के आरम्भ में थे। श्रीराजेन्द्रनाथ विद्याभूषण प्रणीत 'कालिदास' नामक समालोचना-अन्य की भूमिका में श्रीयुत हरिनाथ दे महाशय ने भी पाण्डेय जी का मत लिखा है। उसमें उन्होंने लिखा है किः-

(१) तस्मै सभ्याः सभार्य्याय गोप्त्रे गुप्ततमेन्द्रिया:

(२) अन्वास्य गोप्ता गृहिणी-सहायः

(३) स्ववीय गुप्ता हि मनाः प्रसूतिः

इत्यादि रघुवंश के श्लोकों में गोप्ता, गुप्त, गोप्त्रे आदि पद गुप्तवंशी राजाओं के सूचक हैं।

प्रयाग में समुद्रगुप्त का जो स्तम्भ है उस पर उसके विजय की वार्ता खुदी हुई है। वह रघु के दिग्विजय से बहुत कुछ मिलती है। अर्थात कालिदास ने रघु के दिग्विजय के बहाने समुद्रगुप्त का दिग्विजय-वर्णन किया है। मजूमदार महाशय ने रघु का दिग्विजय स्कन्दगुप्त का दिग्विजय बताया! इन्होंने उसे समुद्रगुप्त का बताया!! आगे चल कर पाठकों को मालूम होगा कि एक और महाशय ने उसे ही यशोधा का दिग्विजय समझा है!!! कुमारसम्भव के "कुमार-कल्पं सुषुवे कुमारं" और "न कारणाद् स्वाद् बिभिदे कुमारः"-आदि में जो 'कुमार' शब्द है उसे आप लोग कुमारगुप्त का गुप्तवाची बतलाते हैं।

पाण्डेयजी की यशःप्राप्ति में बड़ी बाधायें आ रही हैं। डाक्टर एच० बेक (Beckh) तिब्बती और संस्कृत भाषा के बड़े पण्डित हैं। कालिदास के समय निर्णय के विषय में जिन तत्वों का आविष्कार पाण्डेयजी ने किया है प्रायः उन्हीं का आविष्कार डाक्टर साहब ने भी किया है। परन्तु पण्डितों की राय है कि दोनों महाशयों को एक दूसरे की खोज की कुछ भी ख़बर न थी। दोनों निरूपण या निर्णय यद्यपि मिलते हैं तथापि उनमें परस्पर आधार-प्राधेय भाव नहीं। पारागनी - Trm -----...