पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१४५

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रघुवंश।

को मिलता है । गङ्गा और यमुना का सङ्गम प्रयाग में हुआ है और मथुरा से प्रयाग सैकड़ों कोस दूर है । परन्तु, उस समय, मथुरा की यमुना,प्रयाग की गङ्गा सी बन जाती है। गङ्गा का जो दृश्य प्रयाग में देख पड़ता है वही दृश्य इस राजा की रानियों के जल-विहार के प्रभाव से मथुरा में उपस्थित हो जाता है। गरुड़ से डरा हुआ कालियनाग,अपने बचने का और कोई उपाय न देख, इसकी राजधानी के पास ही,यमुना के भीतर,रहता है और यह उसकी रक्षा करता है। इसी कालिय ने इसे एक अनमोल मणि दी है। उसी देदीप्यमान मणि को यह, इस समय भी, अपने हृदय पर धारण किये हुए है। मुझे तो ऐसा जान पड़ता है कि उसे पहन कर यह कौस्तुभ-मणि धारण करने वाले विष्णु भगवान् को लज्जित सा कर रहा है। हे सुन्दरी! इस तरुण राजा को अपना पति बना कर, कुवेर के उद्यान के तुल्य इसके वृन्दावन-नामक उद्यान में,कोमल पत्तों की सेज पर फूल बिछा कर तू आनन्दपूर्वक अपने यौवन को सफल कर सकती है; और, जल के कणों से सींची हुई तथा शिलाजीत की सुगन्धि से सुगन्धित शिलाओं पर बैठ कर, वर्षा-ऋतु में, गोवर्धन-पर्वत के रमणीय गुहा-गृहों के भीतर मोरों का नाच चैन से देख सकती है।

सागर में जाकर मिलने वाली नदी, राह में किसी पर्वत के आ जाने पर,जिस तरह चक्कर काट कर उसके आगे निकल जाती है उसी तरह जलके भँवर के सदृश सुन्दर नाभिवाली इन्दुमती भी, उस राजा को छोड़ कर,आगे बढ़ गई । बात यह थी कि उसका पाना उस राजा के भाग्य ही में न था; वह तो और ही किसी की बधू होने वाली थी।

शूरसेन देश के राजा को छोड़ कर राज-कन्या, इन्दुमती, कलिङ्ग -देश के राजा, हेमाङ्गद, के पास पहुँची। यह राजा महापराक्रमी था। अपने शत्रुओं का सर्वनाश करने में इसने बड़ा नाम पाया था। एक भी इसका वैरी ऐसा न था जिसे इससे हार न माननी पड़ी हो । भुजबन्द से शोभित भुजा वाले इस राजा के सामने उपस्थित होकर सुनन्दा, पूर्णमासी के चन्द्रमा के समान मुलवाली इन्दुमती से, कहने लगीः-

“यह राजा महेन्द्र-पर्वत के समान शक्ति रखता है । यह महेन्द्रा- चल