पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९३
छठा सर्ग।


का भी मालिक है और महासागर का भी। ये दोनों ही इसी के राज्य की सीमा के भीतर हैं। युद्ध-यात्रा में इसके पर्वताकार मस्त हाथियों के समूह को देख कर यह मालूम होता है कि हाथियों के बहाने प्रत्यक्ष महेन्द्राचल ही, इसका सहायक बन कर, इसकी सेना के आगे आगे चल रहा है। कोई धनुर्धारी इसकी बराबरी नहीं कर सकता। धनुर्धारी योद्धाओं में इसी का नम्बर सबसे ऊँचा है। इसने अपने धन्वा को खींच खींच कर इतने बाण छोड़े हैं कि उसकी डोरी की रगड़ से इसकी दोनों सुन्दर भुजाओं पर दो रेखायें बन गई हैं। अपने शत्रुओं की राजलक्ष्मी को इसने अपनी भुजाओं से बलपूर्वक पकड़ पकड़ अपने यहाँ कैद किया है। पकड़ी जाने पर, उस लक्ष्मी के कज्जलपूर्ण आँसू इसकी भुजाओं पर गिरे हैं। इससे जान पड़ता है कि धनुष की डोरी की वे दो रेखायें नहीं, किन्तु शत्रु लक्ष्मी के काले काले अश्रु-जल से छिड़के हुए दो रास्ते हैं। इसका महल समुद्र के इतना निकट है कि खिड़कियों से ही उसके उत्ताल तरङ्ग दिखाई देते हैं। इसके यहाँ, पहर पहर पर, समय की सूचक तुरही नहीं बजती। यदि बजे भी तो सागर की मेघ-गम्भीर ध्वनि में ही वह डूब जाय; सुनाई ही न पड़े। इस कारण समुद्र की गुरुतर गर्जना से ही यह घड़ी-घंटे का काम लेता है। स्वयं समुद्र ही इसे सोते से जगाता भी है। वह इसके राज्य में रहता है न! इसीसे उसे भी इसकी सेवा करनी पड़ती है। इसके राज्य में समुद्र के किनारे किनारे ताड़ के पेड़ों की बड़ी अधिकता है। उनके वन के वन दूर तक चले गये हैं। इन पेड़ों के पत्ते जिस समय हवा से हिलते हैं उस समय उनसे बड़ा ही मनोहर शब्द होता है। इस राजा के साथ, समुद्र तट पर, ताड़ के पेड़ों की कुजों में तुझे ज़रूर विहार करना चाहिए। यदि तू मेरी इस सलाह को मान लेगी तो द्वीपान्तरों में लगे हुए लौंग के सुगन्धित फूलों को छू कर आये हुए पवन के झकोरे तक तुझे प्रसन्न करने की चेष्टा करेंगे। पसीने की बूंदों को ज़रा भी वे तेरे शरीर पर न ठहरने देंगे--निकलने के साथ ही वे उन्हें सुखा देंगे।"

द्वारपालिका सुनन्दा ने, यद्यपि, इस तरह, उस लुभावने रूपवाली विदर्भ-नरेश की छोटी बहन को बहुत कुछ लोभ दिखाया, तथापि उसकी सलाह इन्दुमती को पसन्द न आई। अतएव उद्योगपूर्वक दूर से लाई हुई।

१८