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रघुवंश।

किसी सैनिक की कटी हुई भुजा को मांसभोजी पक्षो खाने लगे। उसके दोनों सिरों से नोच नोच कर बहुत सा मांस वे खा भी गये। इतने में एक स्यारनी ने उसे देख पाया। वह झपटी और पक्षियों से उस अधखाई भुजा को छीन लाई। उस पर, बीच में, मारे गये सैनिक का भुजबन्द ज्यों का त्यों बंधा था। इससे उसके नीचे का मांस पत्तियों के खाने से बच रहा था। स्यारनी ने जो दाँत उस पर मारे तो भुजबन्द की नाकों से उसका तालू छिद गया। अतएव, यद्यपि मांस उसे बहुतही प्यारा था, तथापि, लाचार होकर, उसे वह बाहु-खण्ड छोड़ ही देना पड़ा।

शत्रु के खड्गाघात से एक वीर का सिर कट कर ज्योंही ज़मीन पर गिरा त्योंही युद्ध में लड़ कर मरने के पुण्यप्रभाव से, वह देवता हो गया। साथही एक देवाङ्गना भी उसे प्राप्त हो गई और तत्काल ही वह उसकी बाई तरफ विमान पर बैठ भी गई। इधर यह सब हुआ उधर उसका मस्तकहीन धड़, तब तक, समर-भूमि में, नाचता ही रहा। उसके नाच को विमान पर बैठे हुए इस वीर ने बड़े कुतूहल से देर तक देखा। अपने ही धड़ का नाच देखने को मिलना अवश्य ही कुतूहल की बात थी।

दो और वीर, रथ पर सवार, युद्ध कर रहे थे। उन दोनों ने परस्पर एक दूसरे के सारथी को मार गिराया। सारथीहीन रथ हो जाने पर वे खुदही सारथी का भी काम करने लगे और लड़ने भी। कुछ देर में उन दोनों के घोड़े भी मर कर गिर गयें। यह देख वे अपने अपने रथ से उतर पड़े और गदा-युद्ध करने लगे। उन्होंने ऐसा भीषण युद्ध किया कि ज़रा देर बाद उनकी गदायें चूर चूर हो गई। तब वे दोनों, परस्पर, योहो भिड़ गये और जब तक मरे नहीं बराबर मल्लयुद्ध करते रहे।

दो और वीरों का हाल सुनिए। बड़ी देर तक परस्पर युद्ध करके वे दोनों एक ही साथ घायल हुए और एक ही साथ मर भी गये। स्वर्ग जाने पर एक ने जिस अप्सरा को पसन्द किया, दूसरे ने भी उसी को पसन्द किया। फल यह हुआ कि वहाँ भी दोनों आपस में विवाद करने और लड़ने लगे-देवता हो जाने पर भी उनका पारस्परिक वैर-भाव न गया।

कभी आगे और कभी पीछे बहनेवाली वायु की बढ़ाई हुई, महासागर की दो प्रचण्ड लहरें जिस तरह कभी आगे को बढ़ जाती हैं और कभी