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रघुवंश।


अपने ही होंठ अपने दाँतों से काटने लगते थे। इससे होठ और भी अधिक लाल हो जाते थे। इसके साथ ही, क्रोधाधिक्य के कारण, उनकी भौहें बेतरह टेढ़ी हो जाती थीं। इससे भौहों के ऊपर की रेखा और भी अधिक स्पष्ट दिखाई देने लगती थीं।

अज के अतुल पराक्रम को देख कर उसके शत्रु थर्रा उठे। उन्होंने कहा-इसे इस तरह जीतना असम्भव है। आवो, सब मिल कर इस पर एकबारगी टूट पड़े। इस प्रकार उन्होंने उसके साथ अधर्मयुद्ध करने का निश्चय किया। हाथी, घोड़े, रथ आदि जितने अङ्ग सेना के हैं उन सबको, विशेष करके हाथियों को, उन्होंने एक ही साथ धावा करने के लिए आज्ञा दे दी। दृढ़ से भी बढ़ कवचों को फाड़ कर शरीर के भीतर घुस जाने की शक्ति रखनेवाले जितने अस्त्र-शस्त्र थे उन सबको भी उन्होंने साथ लिया। इसके सिवा और भी जो जो उपाय उनसे करते बने वे भी सब उन्होंने किये। इस प्रकार खूब तैयारी करके वे, सब के सब राजा, अकेले अज पर, आक्रमण करने के लिए दौड़ पड़े। उधर सर्वसिद्धता इधर एकाकीभाव! फल यह हुआ कि शत्रुओं की शस्त्रास्त्र-वर्षा से अज का रथ, प्रायः बिलकुल ही, ढक गया। उसकी ध्वजा मात्र, ऊपर, थोड़ी सी दिखाई देती रही। जिस दिन प्रातःकाल कुहरा अधिक पड़ता है उस दिन, यदि सूर्य का थोड़ा बहुत भी प्रकाश न हो तो, यही न मालूम हों सके कि प्रातःकाल हो गया है या अभी तक रात ही है। ऐसी दशा में, सूर्य के अत्यल्प प्रकाश से जिस तरह प्रात:काल का ज्ञान लोगों को होता है, उसी तरह रथ के ऊपर उड़ती हुई ध्वजा की चोटी को देख कर ही सैनिक लोग अज को पहचान सके। शत्रुओं ने शस्त्र बरसा कर अज के रथ की ऐसी गति कर डाली।

इस दशा को प्राप्त होने पर, सार्वभौम राजा रघु के पुत्र, पञ्चशायक के समान सुन्दर, अज को प्रियंवद नामक गन्धर्व से पाये हुए सम्मोहनास्त्र की याद आई। कर्त्तव्य-पालन में अज बहुत ही दृढ़ था। आलस्य उसे छू तक न गया था। अतएव कर्तव्य निष्ठा से प्रेरित होकर उसने उस नींद लानेवाले अस्त्र को उन राजाओं पर छोड़ ही दिया। उसके छूटते ही राजाओं की सेना एकदम सो गई। सैनिकों के हाथ जहाँ के तहाँ जकड़