पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१७६

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आठवाँ सर्ग।

ही था। अपनी अपनी ऋतु में फूलने वाली लताओं के सौन्दर्य, सुवास,पराग और रस-माधुर्य आदि गुण,इस माला के इन गुणों के सामने, कोई चीज़ ही न थे। यह जो नारद की वीणा से खिसकी तो अज की रानी इन्दुमती की छाती पर आ गिरी ।

नर-श्रेष्ठ अजं की प्रियतमा के वक्षःस्थल पर गिर कर वह माला वहाँ एक पल भर भी न ठहरी होगी कि इन्दुमती की दृष्टि उस पर पड़ो। उसे देखते ही इन्दुमती विह्वल हो गई और-राहु के द्वारा ग्रास किये गये चन्द्रमा की चाँदनी के समान--आँखें बन्द करके सदा के लिए अस्त हो गई । देखना,सुनना,बोलना आदि उसके सारे इन्द्रिय-व्यापार एकदम बन्द हो गये। उसके अचेतन शरीर ने अज को भी बेहोश करके ज़मीन पर गिरा दिया। प्रियतमा इन्दुमती को प्राणहीन देखतेही अज भी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। गिरना ही चाहिए था । क्या दीपक के जलते हुए तेल के बूंद के साथ ही दीपक की लौ भी ज़मीन पर नहीं गिर जाती ? अज और इन्दुमती की यह दशा हुई देख, उन दोनों के सेवकों ने बड़े ही उच्च-स्वर से रोना और विलाप करना आरम्भ कर दिया। उनका रोना-धोना सुन कर उस फूल-बाग के कमल-सरोवर में रहने वाले पक्षी तक घबरा उठे। भयभीत होकर वे भी कलकल शब्द करने और रोने लगे । उन्हें इस प्रकार रोता देख ऐसा मालूम होने लगा जैसे, राजा और रानी के सेवकों की तरह, वे भी दुखी हो रहे हैं। पंखा झलने और शीतल जल छींटने से अज की मूर्छा तो किसी तरह दूर होगई-वह तो होश में आ गया; पर, इन्दुमती वैसी ही निष्प्राण पड़ी रह गई । बात यह है कि ओषधि तभी तक अपना गुण दिखाती है जब तक आयु शेष रहती है। आयु का अन्त आ जाने पर ओषधियाँ काम नहीं करती।

चेतनता जाती रहने से निश्चेष्ट हुई इन्दुमती, उतरे हुए तारों वाली वीणा की उपमा को पहुँच गई । अत्यन्त प्रीति के कारण अज ने उसे उसी दशा में उठा लिया और अपने गोद पर रक्खा-उस गोद पर जिससे उसकी रानी पहले ही से परिचित थी। इन्द्रिय-जन्य ज्ञान नष्ट हो जाने के कारण इन्दुमती के शरीर का रङ्ग बिलकुल ही पलट गया। उसकी चेष्टा ही कुछ और हो गई। उसके सर्वाङ्ग पर कालिमा सी छा गई । अतएव उसे