पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१८१

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रघुवंश।

ने,तेरा नाश करके,मेरे सर्वस्व ही का नाश कर दिया। अब मेरे पास रह क्या गया ? उसने तो सभी ले लिया; कुछ भी न छोड़ा । हे मतवान्ले नेत्रों वाली ! मेरे मद्य पी चुकने पर, बचे हुए रसीले मद का स्वाद तुझे बहुत ही अच्छा लगता था । इसी से तू सदा मेरे पीछे मद्यपान किया करती थी। हाय ! हाय ! वही तू ,अब, मेरे आँसुओं से दूषित हुई मेरी जलाञ्जली को,जो तुझे परलोक में मिलेगी किस तरह पी सकेगी ? इसमें कोई सन्देह नहीं कि मेरे लिए अनेक प्रकार के वैभव और ऐश्वर्य सुलभ हैं । परन्तु तेरे बिना वे मेरे किसी काम के नहीं । अज को जो सुख मिलना था मिल चुका । उसकी अवधि आज ही तक थी। संसार में जित -ने प्रलोभनीय पदार्थ और सुखोपभोग के सामान हैं उनकी तरफ़ मेरा चित्त नहीं खिंचता । मेर। सारा सांसारिक भोग-विलास एक मात्र तेरे आसरे था । तेरे साथ ही वह भी चला गया।"

अपनी प्रियतमा के मरने पर,कोसलेश्वर अज ने,इस प्रकार, घंटों, बड़ा ही कारुणिक विलाप किया। उसका रोना-बिलखना सुन कर मनुष्य ही नहीं,पेड़-पौधे तक रो उठे । डालों से टपकते हुए रसरूपी आंसु बरसवा कर अज ने पेड़ों को भी रुला दिया। उसके दुख से दुखी होकर,रस टपकाने के बहाने, पेड़ भी बड़े बड़े आँसू गिराने लगे।

बहुत देर बाद, अज के बन्धु-बान्धवों ने इन्दुमती के शव को अज की गोद से अलग कर पाया । तदनन्तर, उन्होंने इन्दुमती का शृङ्गार किया, जैसा कि मरने पर सौभाग्य स्त्रियों का किया जाता है। फिर उन्होंने उस मृत शरीर को अगर और चन्दन आदि से रची गई चिता पर रख कर उसे अग्नि के हवाले कर दिया। इन्दुमती पर अज का इतना प्रेम था कि वह भी उसी के साथ ही जल जाता । परन्तु उसने सोचा कि यदि मैं ऐसा करूँगा तो लोग यह कहेंगे कि इतना बड़ा राजा होकर भी स्त्री के वियोगदुःख को न सह सका और उसी के सोच में वह भी उसी का अनुगमन कर गया। इसी अपवाद से बचने के लिए अज ने जल जाना मुनासिब न समझा, जीने की आशा अथवा जलने के डर से नहीं।

इन्दुमती तो रही नहीं; उसके गुणमात्र, याद करने के लिए, रह गये। उन्हीं का स्मरण करते हुए उस शास्त्रवेत्ता और विद्वान् राजा ने किसी तरह सूतक के दस दिन बिताये । तदनन्तर, राजधानी के फूल-बाग में ही उसने