पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१८६

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आठवां सर्ग।

इस समय अज का पुत्र दशरथ विलकुल ही अबोध बालक था । अतएव मधुरभाषो सत्यत्रत अज ने, पुत्र के बचपन के आठ वर्ष, कभी अपनी प्रियतमा रानी का चित्र देख कर और कभी पल भर के लिए स्वप्न में उसके दर्शन करके, किसी तरह, बड़ी मुश्किलों से बिताये । महल की छत तोड़ कर पीपल का पेड़ जैसे भीतर चला जाता है वैसे ही इन्दुमती की मृत्यु का शोक-शर अज की छाती को फाड़ कर बलपूर्वक भीतर घुस गया । परन्तु इससे उसने अपनी भलाई ही समझी। उसने कहा-"बहुत अच्छी बात है जो इस शोक-शर ने मेरे हृदय में इतना गहरा घाव कर दिया। इसकी दवा वैद्यों के पास नहीं। यह अवश्य ही मेरी मृत्यु का कारण होगा।" बात यह थी कि वह अपनी प्यारी रानी का अनुगमन करने के लिए बहुत ही उतावला हो रहा था। इसी से उसने प्रेमपूर्वक मृत्यु का आह्वान किया।

तब तक कुमार दशरथ ने शास्त्रों का अभ्यास भी कर लिया और युद्ध-विद्या भी अच्छी तरह सीख ली । शस्त्रास्त्रों से सज कर वह कवच धारण करने योग्य हो गया । अतएव पुत्र को समर्थ देख कर अज ने उसे विधिपूर्वक प्रजापालन करने की आज्ञा दी-उसने अपना राज्य पुत्र को सौंप दिया। तदनन्तर, अपने शरीर को रोग का बुरा घर समझ कर, उसमें और अधिक दिन तक न रहने की इच्छा से उसने अन्न खाना छोड़ दिया-अनशन-व्रत धारण कर लिया। इस तरह, कुछ दिन बाद, गङ्गाज् और सरयू के सङ्गम-तीर्थ में अज का शरीर छूट गया । इस तीर्थ में मरने का फल यह हुआ कि मरने के साथ, तत्काल ही, वह देवता हो गया; और, नन्दन-वन के विलास-भवनों में, पहले से भी अधिक सुन्दर शरीर वाली कामिनी के साथ फिर वह विहार करने लगा।