पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१८८

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नवाँ सर्ग।

उसके शान्तिपूर्ण राज्य में पेड़-पौधे फलों और फूलों से लद गये। पृथ्वी पहले से भी अधिक अन्न उत्पन्न करने लगी। देश में रोग का कहीं चिह्न तक न रह गया । वैरियों से भयभीत होने का तो नाम ही न लीजिए । दसों दिशाओं के जीतने वाले राजा रघु, और, उसके अनन्तर अज को पाकर जिस तरह पृथ्वी कृतार्थ हुई थी-जिस तरह वह शोभा और समृद्धि से सम्पन्न हो गई थी-उसी तरह वह दशरथ जैसे परम प्रतापी स्वामी को पाकर भी शोभाशालिनी और समृद्धिमती हुई । दशरथ किसी भी बात में अपने पिता और पितामह से कम न था। अतएव उसके समय में पृथ्वी पर सुख- समृद्धि और शोभा-सौन्दर्य आदि की कमी हो कैसे सकती थी ? सच तो यह है कि किसी किसी बात में राजा दशरथ अपने पूर्वजों से भी आगे बढ़ गया। सब के साथ एक सा न्याय करने में उसने धर्मराज का, दानपात्रों पर काञ्चन की वृष्टि करने में कुवेर का, दुराचारियों को दण्ड देने में वरुण का, और तेजस्विता तथा प्रताप मैं सूर्य का अनुकरण किया।

राजा दशरथ दिन-रात इसी प्रयत्न में रत रहने लगा कि किस प्रकार उसके राज्य का अभ्युदय हो और किस प्रकार उसका वैभव बढ़े। इस कारण और विषयों की तरफ़ उसका ध्यान ही न गया। न उसने कभी जुआ खेला; न वह अपनी नवयौवना रानी पर ही अधिक आसक्त हुआ; न उसने शिकार ही से विशेष प्रीति रक्खी; और न वह उस मदिरा ही के वश हुआ जिसके भीतर चन्द्रमा का झिलमिलाता हुआ प्रतिबिम्ब दिखाई दे रहा था और जिसे वह गहने की तरह धारण किये हुए थी। राजा लोग विशेष करके इन्हीं व्यसनों में फँस जाते हैं । परन्तु इनमें से एक भी व्यसनहदशरथ के चित्त को अपनी तरफ़ न खोंच सका। इन्द्र, एक प्रकार से, यद्यपि दशरथ का भी प्रभु था-इन्द्र का स्वामित्व यद्यपि दशरथ पर भी था-तथापि उससे भी दशरथ ने कभी दीन वचन नहीं कहा । हँसी-दिल्लगी में भी वह कभी झूठ नहीं बोला । और, अपने शत्रुओं के विषय में भी उसने अपने मुँह से कभी कठोर वचन नहीं निकाला । बात यह थी कि उसे बहुत ही कम रोष आता था; अथवा यह कहना चाहिए कि उसे कभी रोष आता ही न था।

दशरथ के अधीन जितने माण्डलिक राजा थे उनको उससे वृद्धि और हास-हानि और लाभ-दोनों की प्राप्ति हुई। जिस राजाने उस की आज्ञा